एक धरती जो सदा से जल रही है
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२१२२ २१२२ २१२२
'मन के कोने में इक इच्छा पल रही है'
पर वो चुप है, आज तक निश्चल रही है
एक चुप्पी सालती है रोज़ मुझको
एक चुप्पी है जो अब तक खल रही है
बूँद जो बारिश में टपकी सर पे तेरे
सच यही है बूंद कल बादल रही है
इक समस्या कोशिशों से हल बनी तब
इक समस्या फिर से पीछे चल रही है
चाँद पूरा है मगर लगता है धुँधला
क्या कोई बदली उसे फिर छल रही है
'तुम हँसे, तो फिर हँसी लौटी मेरी भी
जो हँसी अब तक कहीं ओझल रही है'
कर्म-फल-पट और इच्छा-पट से मिल के
है बनी चक्की जो सबको दल रही है
एक है सूरज जो तपता है सदा ही
एक धरती जो सदा से जल रही है
वो बना है नीव का पत्थर खुशी से
इसलिए उसकी खुशी बस टल रही है
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय
एक चुप्पी सालती है रोज़ मुझको
एक चुप्पी है जो अब तक खल रही है
इक समस्या कोशिशों से हल बनी तब
इक समस्या फिर से पीछे चल रही है
चाँद पूरा है मगर लगता है धुँधला
क्या कोई बदली उसे फिर छल रही है
'तुम हँसे, तो फिर हँसी लौटी मेरी भी
जो हँसी अब तक कहीं ओझल रही है
एक है सूरज जो तपता है सदा ही
एक धरती जो सदा से जल रही है
विशेष तौर पे पसंद आये धन्यवाद....
आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत आभार आपका
आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय सौरभ भाई उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ बदलाव कर चुका हूँ , आ. नीलेश भाई जी के सुझाव पर काम बाक़ी है
आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.
अच्छी गजल हुई है. इसे लेकर जैसे सुझाव आये हैं वे वस्तुतः स्वीकार्य होने चाहिए.
बहुत दिनों बाद आपकी कोई रचना इस मंच पर पोस्ट हुई है.
शुभातिशुभ
आदरणीय बागपतवी भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल निखर गयी है।
आदरणीय नीलेश भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सलाह के लिए आपका आभार
आपकी दोनों सलाह अच्छी हैं , स्वीकार है , आवश्यक सुधार कर लूंगा , आभार आपका
आदरणीय रवि भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार
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