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आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
विषय : विषय मुक्त
अवधि : 29-11-2024 से 30-11-2024 
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अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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सीख ......

"पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की टाँगें दबाते हुए पूछा ।

"कुछ मत पूछ बेटा । हर तरफ मार काट, भागम-भाग ,     हर तरफ चीखें  ही चीखें  थी । हमने थोड़े से गहने  और सामान बाँधा और सब कुछ छोड़ कर निकल लिए ।" पापा ने कहा ।

"आप सुरक्षित कैसे निकले "। सुशील ने पूछा ।

"ह्म्म । बेटे!सन् 1947 के विभाजन में  सम्भव नहीं था वहाँ से सुरक्षित निकलना । उसी कौम का  एक  इंसान फरिश्ता बन कर हमारी मदद को आया और किसी तरीके से बचते बचाते हिन्दुस्तान की ट्रेन में बिठाया और हम बचकर हिन्दुस्तान पहुंचे" । पापा ने कहा ।

"वो नेक  इंसान कौन था पापा "।

"मेरा कार्यालय  अधिकारी। वो मेरी काम के प्रति वफादारी, मेरा  उसके प्रति समर्पित मधुर व्यवहार से बहुत प्रभावित था । बस  उस अधिकारी के प्रति मेरे इस समर्पण भाव  और ईमानदारी ने हमें उस हृदय विदारक स्थिति से निकाला" ।

"बेटे ! एक बात जिन्दगी में हमेशा याद रखना कि मजहबी भाव को अलग रखते हुए  कार्य के प्रति  ईमानदारी, समर्पण  और मधुर व्यवहार कभी बेकार नहीं जाता  और विषम परिस्थिति में  इसके सकारात्मक परिणाम मिलते हैं । अच्छा चल रात बहुत हो गई है  अब सो जा" । यह कहकर पापा करवट बदल कर सो गए ।

सुशील भी पापा की सीख को सोचते सोचते सोने
के लिए अपने कक्ष में चल दिया ।

सुशील सरना /30-11-24

हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में शिरक़त फ़रमा रहे हैं। अच्छी रचना हुई है बालमन की। आजकल बच्चों को कौन इतनी सकारात्मक सोच वाली नैतिक और प्रेरक शिक्षा दे पाता है। कुछ टंकण त्रुटियाॅं शायद नेत्र समस्या के कारण यह गई हैं। गीता का ज्ञान सदैव रहे ध्यान। कर्म करो, फल की चिंता मत करो। फल इसी तरह कब मिल जायें, मनुष्य को पता नहीं चलता पहले से। तीन बातें रचना अनुसार: अभीष्ट कर्म/लक्ष्य के प्रति समर्पण, वफादारी, ईमानदारी और कुशल व्यवहार देते सदा अद्भुत उपहार। रचना के अंत में 'नाम और तिथि' नहीं, बल्कि केवल मौलिक व अप्रकाशित लिखना होता है मंच के नियमानुसार।हर गोष्ठी में आपकी प्रतीक्षा रहेगी।

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"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
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