For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-141

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 141वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब हसरत मोहानी

 साहब की गजल से लिया गया है|

"दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना"

  2122           1122        1122            22

फ़ाइलातुन    फ़इलातुन   फ़इलातुन   फ़इलुन/फ़ेलुन

बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ

रदीफ़ :-  करना

काफिया :- आ(भरोसा, इरादा, पर्दा, तमाशा, रुसवा, पैदा आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 मार्च दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन

बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 3102

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जय-जय ! 

सुस्वागतम् ..

जय जय ।

सादर अभिवादन आदरणीय...

जात मानव की हो मानव पे भरोसा करना
प्यार नेमत  है  सदा  प्यार  का दावा करना।१।
*
सिर्फ सुख में ही किसी  के न यूँ शामिल होते
हमको आता है दुखों को भी तो साझा करना।२।
*
लोग कहते हों  भले  लाख  कलाएँ इस की
खूब आता है  गगन  चाँद  को  पर्दा करना।३।
*
हर सजर  को  भला  शादाब  रखोगे कैसे
जब है जंगल ने यहाँ आग से सौदा करना४।
*
खुल गया स्वर्ग का सच पुण्य की गठरी शायद
आज  नेता  को  न  भाता  है  जो  सेवा करना।५।
*
लोग पहले से ही नफरत से भरे हैं राजन
देश में द्वेष ये  अब  और  न  पैदा करना।६।
*
कह दें तौबा जो इसे आज ही हम तुम अच्छा
इस सियासत ने तो हर कौम को मुर्दा करना।७।
*
गिरह-
दुश्मनों में ही सही  वो  हैं  सियासत अपनी
"दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना"।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

आ. भाई मुसाफिर साहब अच्छी ग़ज़ल कही आपने ! किन्तु मुझे शे'र (3 ) और ( 4 ) में सुधार की गुंजाइश महसूस हुई !
( 3 ) में दोनों मिसरों, ऊला और सानी, में राबता नहीं जान पड़ा! ! 'गगन' वस्तु गत संज्ञा है, और वह चांद को बादल आच्छादित करते हैं, 'गगन' तो इसके उलट प्रकाशित करता है
( 4 ) सजर, जैसा कोई शब्द मैंने आज तक न देखा और न ही पढ़ा! शायद आपका, आशय, 'शज़र' से है!
सादर

आदरणीय भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , प्रशंसा व स्नेह के लिए धन्यवाद।

4शेर में "सजर" नहीं , "शजर" ही है । कन्वर्ट करते समय त्रुटि रह गयी है। ध्यान दिलाने के लिए आभार। 

//3 शेर में चाँद की कलाओं को उसकी पर्दा करने की कला बताने का प्रयास किया है। इसमें गगन छिपा नहीं रहा। बल्कि उसे सम्बोधित किया गया है। सादर...

जात मानव की हो मानव पे भरोसा करना
प्यार नेमत  है  सदा  प्यार  का दावा करना।१। ............. उचित 
*
सिर्फ सुख में ही किसी के न यूँ शामिल होते
हमको आता है दुखों को भी तो साझा करना।२। ........... ’भी तो’  भर्ती के शब्द हैं  
*
लोग कहते हों  भले  लाख  कलाएँ इस की
खूब आता है  गगन  चाँद  को  पर्दा करना।३। .............. इस शेर की संप्रेषणीयता स्पष्ट नहीं है. गगन  को यदि मगर किया जाय तो कुछ स्पष्टता हो. लाख कलाएँ  भी बहुत तार्किक प्रतीत नहीं हो रहा. चाँद के सोलह कलाओं से युक्त शै होने की बात कही जाती है.   
*
हर सजर  को  भला  शादाब  रखोगे कैसे
जब है जंगल ने यहाँ आग से सौदा करना४। ..............   सजर वस्तुतः शजर होता है. 
*
खुल गया स्वर्ग का सच पुण्य की गठरी शायद
आज  नेता  को  न  भाता  है  जो  सेवा करना।५। .......   थोडी स्पष्टता और चाहिए .. 
*
लोग पहले से ही नफरत से भरे हैं राजन
देश में द्वेष ये  अब  और  न  पैदा करना।६। ................. ये  भी भर्ती का शब्द प्रतीत हो रहा है. 
*
कह दें तौबा जो इसे आज ही हम तुम अच्छा
इस सियासत ने तो हर कौम को मुर्दा करना।७।........      सानी का विन्यास ही हिंदी-व्याकरणा के मानकों पर नहीं है.  
*
गिरह-
दुश्मनों में ही सही  वो  हैं  सियासत अपनी  .................  चाहे दुश्मन वो सही उनसे सियासत अपनी .......
"दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना"।। ...............   

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में जो कुछ असहज प्रतीत हुआ उसे इंगित किया गया है. 

प्रतिभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद तथा प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.

शुभ-शुभ

आ. भाई सौरभ जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित स्नेह व विस्तृत टिप्पणी से मार्ग दर्शन के लिए आभार। इंगित मिसरों को सुधारने का प्रयास कितना सफल रहा । पुनः मार्गदर्शन की अपेक्षा है । सादर...
*

सिर्फ सुख में ही किसी के न यूँ शामिल होते
हमको आता है दुखों को सदा साझा करना।२। ........... ’भी तो’  भर्ती के शब्द हैं  
*
लोग कहते हैं जिसे  यार  कलाएँ इस की
हम ने समझा है वही चाँद का पर्दा करना।३। ..............
*
खुल गया स्वर्ग का सच पुण्य की गठरी शायद
रास  आता  न  जो  नेता  को  वो  सेवा  करना।५। .......   थोडी स्पष्टता और चाहिए .. 
*
लोग पहले से ही नफरत से भरे हैं राजन
देश में द्वेष तू  अब  और  न  पैदा करना।६। ---
*
ये सियासत जो हर इक कौम को मुर्दा समझे
कह दो  सब  से  कि  इसे  दूर  से  तौबा  करना।७।........ 
*

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, मेरे इंगितों पर ध्यान देने के लिए आपका हार्दिक आभार.

शुभातिशुभ 

जी, सादर आभार..

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। 

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी की विस्तृत और विश्लेषणात्मक टिप्पणी के बाद और कुछ कहना परिहार्य नहीं है।  सादर। 

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित व स्नेह के लिए धन्यवाद। 

ऊपर सुधार का प्रयास किया है । देखिएगा। सादर...

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
25 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
32 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। भाई-चारा का…"
32 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
38 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी, ऐसा करना मुनासिब होगा। "
53 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें"
56 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ इस्लाह भी ख़ूब हुई आ अमित जी की"
58 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ रिचा अच्छी ग़ज़ल हुई है इस्लाह के साथ अच्छा सुधार किया आपने"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आपको ।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Sanjay Shukla जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Euphonic Amit जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Dinesh Kumar जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई है। "
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service