For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ इकतीसवाँ आयोजन है.   

 

इस बार का छंद है

- दोहा छंद 

या 

-  कुण्डलिया छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

19 मार्च 2021 दिन शनिवार से 

20 मार्च 2021 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

चित्र अंर्तजाल के माध्यम से 

कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो

19 मार्च 2021 दिन शनिवार से  20 मार्च 2021 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com  परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2047

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जय-जय .. 

सादर अभिवादन...

आयोजन में आपका, स्वागत है श्रीमान।

भैस खड़ी है सामने, हो जाए कुछ तान ।।

कुंडलियाँ
***********


बैठा  आगे  भैंस  के,  बजा  रहा  नित बीन।
भारत जन सा देखिए, मालिक कितना दीन।।
मालिक कितना दीन, भैंस को ये समझाता।
चारा कम खा नित्य, मोल ना सस्ता आता।।
पगुरा मत यूँ खूब, हमारी आस जगाके।
अब तो  दूध  उतार, भोर  से बैठा आगे।।
**
बड़े जतन से भैंस इक, हमने जो ली पाल।
हुई  श्रीमती  भैंस  सी, कैसे  रखे  खयाल।।
कैसे रखे खयाल, कि जितना चारा डालें।
खाकर मारे लात, अगर हम दूध निकालें।।
कहे मुसाफिर सत्य, छूने दे न कर थन से।
जाता चाहे  पास, सदा  ही  बड़े जतन से।।
**
तपती गर्मी छोड़िए, हो पावस का मास।
रेतीली है भूमि ये, उगे न जिस पर घास।।
उगे न जिस पर घास, न मिलता कोई पानी।
जिन का रहे अभाव, करती  भैंस मनमानी।।
दिखते मालिक भैंस, यहाँ पर तो हठधर्मी।
जिन को  पाये  तोड़, न  कोई तपती गर्मी।।
**
मौलिक/अप्रकाशित

शानदार आगाज़ आदरणीय भाई लक्ष्मण जी, तीनों कुंडलिया शानदार हुईं हैं । प्रथम बहुत ही दमदार ।

बहुत बहुत बधाई ।

आ. भाई गणेष जी, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

आदरणीय, चित्र को सुंदर शब्द मिले हैं. तथा, आयोजन का प्रारम्भ शानदार हुआ है.

हार्दिक बधाई. 

आपकी प्रस्तुति पर पंक्ति प्रति पंक्ति अपने भाव रख रहा हूँ. तथा, इन पंक्तियों में मूलभूत विधान के अनुसार जिन स्थानों पर सुधार की आवश्यकता प्रतीत हो रही है, मैं उन स्थानों को भी इंगित कर रहा हूँ : 

बैठा  आगे  भैंस  के,  बजा  रहा  नित बीन।
भारत जन सा देखिए, मालिक कितना दीन।। ... ........ वाह ! 
मालिक कितना दीन, भैंस को ये समझाता।
चारा कम खा नित्य, मोल ना सस्ता आता।। ............   वाह वाह ! 
पगुरा मत यूँ खूब, हमारी आस जगाके।
अब तो  दूध  उतार, भोर  से बैठा आगे।। ................. ऐसी तुकान्तता छंदों में नेष्ट हैं, आदरणीय.

कारण कि, देवनागरी भाषा के व्याकरण के अनुसार, व्यंजन-वर्णॊं के साथ स्वर मिल कर उस वर्ण का ही हिस्सा हो जाते हैं.  अतः स्वर की मात्राओं का प्रच्छन्न स्वरूप नहीं रह जाता.

लेकिन ऐसा उर्दू लिपि में नहीं होता. उर्दू में स्वर के लिए कोई विशिष्ट् चिह्न नहीं होते. बल्कि वे वर्ण ही होते हैं, जो किसी अन्य वर्ण के साथ मिलकर समवेत उच्चारित होते हैं. अतः ऐसे स्वर वर्ण शब्दों में अपने प्रच्छन्न स्वरूप में विद्यमान रहते हैं. इसीकारण, उर्दू रचनाओं में स्वर के चिह्न भी तुक हेतु प्रयुक्त हो जाते हैं. जिसकी आदत आपको गजलों पर अभ्यास करने के कारण बनी हुई है.    
**
बड़े जतन से भैंस इक, हमने जो ली पाल।
हुई  श्रीमती  भैंस  सी, कैसे  रखे  खयाल।।  ........ हा हा हा.. 
कैसे रखे खयाल, कि जितना चारा डालें।
खाकर मारे लात, अगर हम दूध निकालें।।
कहे मुसाफिर सत्य, छूने दे न कर थन से। .......... रोला के मूलभूत विधान के अनुसार इसके दूसरे चरण का प्रारम्भ त्रिकल से होता है. 
जाता चाहे  पास, सदा  ही  बड़े जतन से।। .......... चाहे जाता पास, सदा ही बड़े जतन से 
**
तपती गर्मी छोड़िए, हो पावस का मास।
रेतीली है भूमि ये, उगे न जिस पर घास।।  .........  सही 
उगे न जिस पर घास, न मिलता कोई पानी। ........ पानी के साथ ’कोई’ का प्रयोग उचित प्रतीत नहीं हो रहा.
जिन का रहे अभाव, करती  भैंस मनमानी।। ....... भैंस करती मनमानी .. कारण ऊपर स्पष्ट किया गया है. 
दिखते मालिक भैंस, यहाँ पर तो हठधर्मी।
जिन को  पाये  तोड़, न  कोई तपती गर्मी।।

इस सार्थक प्रयास तथा आपके अभ्यास हेतु हार्दिक बधाइयाँ. 

शुभ-शुभ

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति, स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।
विस्तृत टिप्पणी कर आपने जो मार्गदर्शन किया है उससे इन छन्दों को साधने में पूर्ण मदद मिलेगी। आपके द्वार इंगित पदों को सुधारने का प्रयास किया है। कितनी सफलता मिली, मार्गदर्शन करें। इस असीम स्नेह के लिए पुनः हार्दिक आभार।

भारत जन सा देखिए, मालिक कितना दीन।
बैठा आगे भैंस के, बजा रहा नित बीन।।

#ऐसी तुकान्तता छंदों में नेष्ट हैं, आदरणीय#

पगुरा मत यूँ खूब, जलाता ताप अगन सा।
अब तो दूध उतार, नहीं रख भारत जन सा।।
**
#रोला के मूलभूत विधान के अनुसार इसके दूसरे चरण का प्रारम्भ त्रिकल से होता है. #

कहे "मुसाफिर" देत, लगाने हाथ न थन से।

**
#पानी के साथ ’कोई’ का प्रयोग उचित प्रतीत नहीं हो रहा.#

उगे न जिस पर घास, तनिक मिले न पानी।
*
#भैंस करती मनमानी .. कारण ऊपर स्पष्ट किया गया#
निश्चित हो आपूर्ति, करे न भैंस मनमानी।।

आदरनीय लक्ष्मण भाईजी 

इस चित्र को लेकर तीन कुण्डलिया लिखना सहज  नहीं है| हार्दिक बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर|

जो गलतियाँ स्पष्ट हैं वो तो कोई  भी देख लेता लेकिन आ. सौरभ भाई ने कारण बताते हुए विस्तार से जो टिप्पणी की है उससे हम सभी पाठकों को लाभ हुआ है|

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अखिलेश भाईजी

आ. भाई अखिलेश जी, सादर आभार।

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

सादर अभिवादन प्रदत्त चित्रानुसार बहुत प्रभावशाली छंद सृजन हार्दिक बधाई स्वीकार करें

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
1 hour ago
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
21 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
22 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
22 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. रवि जी,ग़ज़ल तक आने और उत्साह वर्धन का धन्यवाद ..ऐ पर आपसे सहमत हूँ ..कुछ सोचता हूँ…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अनुज बृजेश , प्रेम - बिछोह के दर्द  केंदित बढ़िया गीत रचना हुई है , हार्दिक बधाई आदरणीय…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service