For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-74 (विषय: अनुभव)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-74 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-74
विषय: "अनुभव"
अवधि : 30-05-2021 से 31-05-2021 तक
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
.
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 3376

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपको लघुकथा अच्छी लगी। मेरी मेहनत सफल हो गई।हार्दिक आभार आपका।।

फोटू (लघुकथा) :


अपने रिश्तेदारों से मिलने वह शिक्षक अपनी पत्नी सहित दोहरे मास्क लगाये शहर की एक भव्य सोसाइटी के मुख्य द्वार पर पहुँचा। खाकी वर्दी पहने चुस्त, मिलनसार और ख़ूबसूरत सुरक्षा कर्मी गार्ड ने हमेशा की तरह उससे अभिवादन कर तापमापी से उन दोनों का ताप जाँचा। फ़िर कोबिड महामारी के भयावह रूप पर अपने अनुभव व सावधानी वग़ैरह पर चर्चा करने लगा।


"हर आने वाले का टेम्पिरेचर ज़रूर देखते हैं भाईसाहब। दो मास्क लगाओ और सेनीटाईज़र लगाओ हाथों में। फ़िर अंदर जाओ। कोरोना फ़िर से छा गया। ग़ज़ब का शातिर कीड़ा है।" आँखें फाड़कर वह गार्ड बोला।


"तुम अपना भी ख़्याल रखना भाई! डबल म्यूटेंट वाला बहुत ज़ल्दी बीमारी फैलाता है!" शिक्षक ने उससे कहा।


"भाईसाहब, मास्क वग़ैरह से कुछ नहीं होगा। मैं तो अपनी पूरी बॉडी चैक करता रहता हूँ। बड़ा नटखट कीड़ा है कोरोना।" उसने अपनी वर्दी को हाथ से झाड़ते हुए कहा, "आज आधी रात को ग़जब हो गया। जैसे ही मुझे शक हुआ कि मेरे पैंट पर कुछ कोरोना रेंग रहे हैं, मैंने मच्छर की तरह उनको मुट्ठी में पकड़ना शुरू कर दिया!"


अब शिक्षक की पत्नी बोल पड़ी, "कोरोना वाइरस दिख गये तुम्हें आँखों से!"


"हाँ मैडम, ग़ज़ब की पावर है इन कीड़ों में। पकड़ने की कोशिश में तीन कोरोना तो मेरे हाथ से दब कर मर गये। लेकिन एक तो मेरी मुट्ठी में आ ही गया!" इतना कह कर उसने अपनी पेंट की ज़ेब से काग़ज़ की एक पुड़िया निकाली और बोला, "बड़ी मुश्किल से इस पुड़िया में एक कोरोना रख पाये भाईसाहब लोगों को दिखाने के लिए।"


"देखने में कैसा था कोरोना!" शिक्षक ने गार्ड से पूछा।


"दिखाता हूँ भाईसाहब! बिल्कुल वैसा ही, जैसा टीवी में दिखाते हैं!" यह कहकर उसने वह काग़ज़ की पुड़िया खोली। फ़िर आँखें फाड़कर झुँझलाकर बोला, "देखो, भाग गया न!"


फ़िर वह अपनी पैंट पर नज़रें गड़ाकर भागे कोरोना को तलाशने लगा।


"भाईसाहब बड़ी फ़ुर्ती से चलता है कोरोना। देखने में पपीते के बीज जैसा; लेकिन कलर ऊपर चमकीला लाल और चारों तरफ़ काँटे ही काँटे और नीचे का हिस्सा बिल्कुल सफ़ेद था उसका। तीन-चार ने अटैक किया था मेरी बॉडी पर। लेकिन सेनीटाईज़र ने बचा लिया हमें।"

यह कहकर उसने उस पुड़िया को फ़िर से चैक किया और फ़िर वह काग़ज़ फैंक दिया।


शिक्षक हैरानी से उस गार्ड को देख रहा था। लेकिन उसकी पत्नी को तो जैसे उसकी हर बात पर भरोसा हो रहा था। आँखें फाड़कर वह कभी गार्ड को देखती, तो कभी अपने पति को।


"जाओ, आप लोग अपने रिश्तेदार के फ़्लैट पर जाओ, लेकिन लापरवाही न करना। इस बार का कोरोना ख़तरनाक है। सेनीटाईज़र पूरी बॉडी पर छिड़कते रहना।" गार्ड ने इतना कहा ही था कि शिक्षक ने बाइक स्टार्ट करते हुए उससे कहा, "तुम भी अपना ख़्याल रखना। ... और सुनो वह कीड़ा कोरोना नहीं था। कुछ और था मौसमी कीड़ा। कोरोना वाइरस वैज्ञानिक ही देख सकते हैं लैंस वाली मशीनों से।"


"भाईसाहब, तो क्या टीवी और विज्ञापनों में ख़बरों की तरह कोरोना की फोटू भी ग़लत और बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं? गार्ड ने उन दोनों पति-पत्नी की ओर देखते हुए आश्चर्य से कहा! तब तक बाइक आगे चल पड़ी।


(मौलिक व अप्रकाशित)

बड़ी समसामयिक रचना प्रदत्त विषय पर, कम पढ़े लिखे लोग कुछ भी समझ जाते हैं. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया तंज के लिए आ शेख शहजाद उस्मानी साहब

सादर नमस्कार। रचना पटल पर समय देकर मेरी हौसला अफ़जाई हेतु शुक्रिया जनाब विनय कुमार साहिब।

(यह एक सच्ची घटना है। ख़ुद का अनुभव!)

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई

सादर नमस्कार। बहुत-बहुत शुक्रिया समय देकर टिप्पणी द्वारा अनुमोदन और प्रोत्साहन हेतु आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' जी।

फिर से नहीं -- लघुकथा 

"कल सुबह अपने गांव निकलना है, तुम भी चलोगे रतन भाई", खोली में पहुँचते ही डबलू ने पूछा. रतन चौंक गया, अभी कुछ ही महीने तो हुए हैं वापस आये, वह टिकट का खर्च और गांव की पुरानी उधारी भी नहीं चुका पाया है.

"क्या हो गया डबलू भाई, गांव पर कुछ अनहोनी हो गया क्या?

अपना कपड़ा बैग में रखते हुए डबलू पलटा और उसने उदास होकर कहा "गांव पर ही नहीं, फिर से पूरे देश में वही पुरानी मनहूस बीमारी शुरू हो गई है. पिछली बार किस तरह से हम लोग जिन्दा पहुंचे थे, याद है ना, इसलिए इस बार यह शुरू होने के पहले ही गांव पहुंचना है". 

रतन को याद आया, आज उसके फैक्ट्री में भी सब लोगों में खुसुर फुसुर हो रही थी. उसने थोड़ी देर सोचा और डबलू के साथ साथ वह भी अपना बैग तैयार करने लगा, उसे लगा कि आखिर जान है तो जहान है.  


मौलिक एवं अप्रकाशित 

सादर प्रणाम आदरणीय, कुछ अनुभव वास्तव में कटु होते हैं...कम शब्दों में बहुत ही सटीक व सुंदर लघुकथा हुई, हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

आदाब। अनुभवों से ही सीख मिलती है और चौकन्ने रहकर सही वक्त पर सही निर्णय लिये जा सकते हैं। विषयांतर्गत महत्वपूर्ण संदेश देती बढ़िया लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।

इस बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।हार्दिक आभार "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"किसी भोजपुरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन किया जाना मुझे अभिभूत कर रहा है। हार्दिक बधाई,…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service