For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मानो उन्हें  किसी की  प्रतीक्षा थी . उनका मन कुछ बैचैन हो रहा था ,वे अंदर ही अंदर कुछ असहाय सा महसूस कर रहे थे .हाथ पीछे की ओर बांधे वे द्वार पर आकर खड़े हो गए  तभी उनकी नजर सामने की और गई .वो धीमे-धीमे  चलकर  वह आती हुई कुछ दूरी पर खड़ी हो गई . दोनों ने एक दूसरे को देखा .

"तुम ? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा .कितना बदल गई हो ,ये सफेद केश , ये कृश काया..." वे बोले 

"फिर तुमने मुझे पहचाना कैसे ?" उसका प्रतिप्रश्न 

" तुम्हारी हँसी का वो नूर, चहरे की निश्चलता आज भी वैसी ही है राधे ." 

"मतलब तुम मुझे भूले नहीं हो."  और वो लौटने को हुई 

" नहीं ! नहीं ! तुम बस ऐसे ही द्वार से नहीं जा सकती . अंदर आओ राधा ." अनुनय  के स्वर  में माधव  ने कहा 

" नहीं माधव ......ये ठीक न होगा ." राधा बोली 

"अच्छा बताओ! तो फिर मैं तुम्हें कहा मिलू ? माधव ने हँसते  हुए पूछा 

"तुम आ पाओगे ? राजा हो अब तुम . मैं तो जीवन संध्या के इन अंतिम क्षणों में तुम्हें  बस एक बार देखना चाहती थी ."

"  हां ! हां ! जरूर आऊंगा राधे . संध्या समय समुद्र के किनारे एक छोटा सा मंदिर है वहाँ. थोड़ी देर और रुकती राधा. उसने विनती  की पर वो लौट गई .

कृष्ण उसे जाते देखते रहे और पुनः कक्ष की ओर मुड़ने लगे तो देखा रुक्मिणी उनके पीछे ही खड़ी थी . रुक्मिणी ने कृष्ण की हथेली को कसकर पकड़ते हुए कहा " मैं ! मैं! भी मिलाना चाहती हूँ उससे एक बार . कितने वर्षो की अस्वस्थता हे मरी ..कि ऐसा क्या है उसमें.....वो मुझसे मिले बिना नहीं जा सकती 

"कहूंगा  उससे " माधव ने हलके से उत्तर दिया 

" सिर्फ़ कहूंगा नहीं , मुझे वचन चाहिए . कब मिलने वाले हो उससे ."

" ठीक हे वचन देता हूँ . संध्या प्रहर में मिलूंगा. माधव कुछ असहज हो रहे थे 

"संध्याकाल क्यों ? अपरान्ह  में भी उन्नत मस्तक से जा सकते हो. मुझे कोई आक्षेप नहीं है . रुक्मिणी ने कटाक्ष करते हुए कहा 

----------------

उस छोटे से मंदिर में एक दिया जल रहा था  जो हवा से फडफडा रहा था. अंदर की मूर्ती  के प्रति उसे कोई उत्सुकता नहीं थी . उसे एकदम उदास लगाने लगा. क्यों आयी वो यहाँ. 

राधा मंदिर की सीढ़ियों पर पीठ टिकाकर बैठ गई .सूर्यास्त के बाद का प्रकाश अभी अँधेरे की और नहीं बढ़ा था. श्याम उसे आते हुए दिखाई दिए , मोहक आकृति में बहती हवा से उनका उत्तरीय लहरा रहा था . राधा ने उठने का प्रयास किया पर .... श्याम ने काँधे पर हाथ धर उसे बैठने का इशारा किया  ओर वो भी सहज होकर उसके पास सीढ़ी पर बैठ गए.
राधा का हाथ हाथों  में लेकर अपनी अंगुलियाँ उसमे फ़सा दी ओर दूसरे हाथ से सहलाने लगे. कुछ क्षणों बाद राधा ने हाथ छुड़ाते हुए  पूछा " बांसुरी नहीं लाये ? एक बार फिर से बजाते तो .."

" नहीं राधा ! द्वारिका के समुद्र में वो तुम्हें सुनाई नहीं देती . हवा ओर पानी की आवाज ओर फिर अब मेरे पास बांसुरी ..."

" मतलब?" राधा ने बीच में ही टोकते हुए पूछा

"मतलब पगली गोकुल से निकलते वक्त तुमने ही तो छीन ली थी ,फिर मैंने कभी बजने की कोशिश भी नहीं की .  माधव ने हँसते   हुए कहा 

" और! तुम्हारे आने के बाद मेरे मन में क्या हुआ जानते हो ? राधा ने पूछा 

" मैं! समझा नहीं ."
  

" कैसे निर्दयी हो  श्याम . इतने साल  सब कुछ सहकर बाल सफेद हो जाने के बाद मैं  क्यों आयी यहाँ. "

श्याम  हाथ में हाथ डालकर हौले से उसे उठाते  समुद्र किनारे चलने लगे. रुक्मिणी , भामा ,द्रौपदी  सभी की बातें करते हुए करीब करीब सारी रात गुजार दी . राधा थककर चूर हो गई थी . पूर्व की ओर सूर्य के लालिमा की दस्तक होने को थी. वो झट नीचे  बैठ गई.उसकी नजर श्याम के कदमों पर गई -रेत पर उनके पदचिन्ह  स्पष्ट उभर आए थे .झट उसने उनके पैरों के पास से रेत उठाकर मुठ्ठी में भर ली  ओर धीरे से पल्लू के किनार में उसे बाँध लिया
.

" ये क्या राधा ? मुझे भी दो उसमे से थोड़ी ." माधव ने आतुरता से कहा 

"अरे! ये क्या  क्यों ?.."

" मैंने वचन दिया है रुक्मिणी को ." माधव ने कहा 

"श्रीरंग! ये लो. कहते हुए राधा ने  रेत के साथ  एक  हल्का सा गुलाबी रंग लिए छोटी सी सिंपी भी  हथेली पर रख दी . 

माधव ने आँखे बंद कर ली मानों उनके भीतर हृदयस्थल  के अंतस तक  सब  कुछ पहुँच गया था. 

"आता हूँ अब" कहते श्याम तेजी से आगे बढ़ा गये  .

"हे श्याम ! कहते राधा उसके निरंजन पदचिन्हों को अकेले ही समुद्र के किनारे देखती रही.सच तो यह था की वह अकेले श्याम को नहीं देख  रही थी.

क्षितिज पर सूर्य भी इस विलक्षण दृश्य का साक्षी था.

-------------
मौलिक,अप्रकाशित 

Views: 334

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on March 25, 2021 at 7:24pm

हार्दिक बधाई नयना (आरती) कानिटकर जी, बेहतरीन प्रसंग।जिस रोचक और मार्मिक शैली में आपने इस वर्णन को प्रस्तुत किया है। वह अद्भुत है। कल्पना से परे है।

Comment by Samar kabeer on March 24, 2021 at 7:42pm

मुहतरमा नयना आरती कानिटकर जी आदाब, अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदाब, मुसाफ़िर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई खूँ सने हाथ सोच त्यों बर्बर सभ्य मानव में फिर नया क्या है।३।…"
21 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय 'अमित' जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल के साथ मुशायरा का आग़ाज़ करने के लिए दाद के साथ…"
25 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, ध्यान दिलाने का बहुत शुक्रिया। ग़ज़ल दोबारा पोस्ट कर दी है। "
35 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"नमन, रिया जी , खूबसूरत ग़ज़ल कही, आपने बधाई ! मतला भी खूसूरत हुआ । "मूसलाधार आज बारिश है…"
36 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या हैअपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले वो…"
36 minutes ago
Prem Chand Gupta replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"इश्क में दर्द के सिवा क्या है।रास्ता और दूसरा क्या है। मौन है बीच में हम दोनों के।इससे बढ़ कर कोई…"
45 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Sanjay Shukla जी आदाब  ओ.बी.ओ के नियम अनुसार तरही मिसरे को मिलाकर  कम से कम 5 और…"
52 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"नमस्कार, आ. आदरणीय भाई अमित जी, मुशायरे का आगाज़, आपने बहुत खूबसूरत ग़ज़ल से किया, तहे दिल से इसके…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service