For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा

122 122 122 122

***

मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,

निगाहों से तुम भी नशा कीजियेगा ।

सफ़र दिल से दिल तक लगे जब भी मुश्किल ,

दुआओं की फिर तुम दवा कीजियेगा ।

नज़र ज़ुल्फ़ों पे गर टिकें ग़ैरों की तो,

यूँ आँखों में नफ़रत अदा कीजियेगा ।

मुझे सोच हों चश्म नम तो समझना,

ये जज़्बात अपने अता कीजियेगा ।

ये है इल्तिज़ा मर भी जाऊँ तो इतनी,

ख़ुदा से न तुम ये गिला कीजियेगा ।

मेरी आरज़ू बंदगी तुम समझ कर,

अदा फिर उम्मीदें वफ़ा कीजियेगा ।

निगाहों में मेरी फ़क़त तेरी मंज़िल,

मुक़द्दर की अब इब्तिदा कीजियेगा ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 694

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on September 21, 2020 at 8:38pm

आदरनीय समर कबीर सर,
मैं खुद भी असमंजस में था कि ग़ज़ल पोस्ट करूँ या नहीं । संतुष्टि नहीं थी लेकिन पोस्ट कर दी ग़ज़ल सोचा कि आपके मार्गदर्शन से इसे निखारने की कोशिश करूँगा । शायद ये कृति अपना कुछ अच्छा रूप ले ले ।
आपके दिए सुझाव पर फिर से कोशिश करता हूँ ।
सर आपने रचना पर अपना इतना वक़्त दिया उसके लिए कोटि कोटि धन्यवाद ।
सादर

Comment by Samar kabeer on September 21, 2020 at 6:17pm

जनाब हर्ष महाजन जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है ।

'मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,

निगाहों से तुम भी नशा कीजियेगा'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, दूसरी बात ये कि महब्बत की इंतिहा नहीं होती, ग़ौर फ़रमाएँ ।

'सफ़र दिल से दिल तक लगे जब भी मुश्किल ,

दुआओं की फिर तुम दवा कीजियेगा'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं, और दुआओं की दवा कैसे होती है?

सानी उचित लगे तो यूँ कर सकते हैं:-

'तो फ़ौरन ख़ुदा से दुआ कीजियेगा'

'नज़र ज़ुल्फ़ों पे गर टिकें ग़ैरों की तो,

यूँ आँखों में नफ़रत अदा कीजियेगा'

ये शैर कथ्य की दृष्टि से कमज़ोर है, देखियेगा ।

'मुझे सोच हों चश्म नम तो समझना,

ये जज़्बात अपने अता कीजियेगा ।'

इस शैर का शिल्प कमज़ोर है,कथ्य भी स्पष्ट नहीं हुआ ।

'ये है इल्तिज़ा मर भी जाऊँ तो इतनी,

ख़ुदा से न तुम ये गिला कीजियेगा ।'

इस शैर का शिल्प कमज़ोर है,उचित लगे तो यूँ कर सकते हैं:-

'यही इल्तिजा है अगर मर भी जाऊँ

ख़ुदा से न कोई गिला कीजियेगा'

'मेरी आरज़ू बंदगी तुम समझ कर,

अदा फिर उम्मीदें वफ़ा कीजियेगा'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।

'निगाहों में मेरी फ़क़त तेरी मंज़िल,

मुक़द्दर की अब इब्तिदा कीजियेगा'

इस शैर का शिल्प,भाव,कथ्य कमज़ोर है ।

Comment by Harash Mahajan on September 20, 2020 at 10:22pm

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और होंसिला अफ़ज़ाई  के लिये बेहद शुक्रिया जनाब।

सादर ।

Comment by Sushil Sarna on September 20, 2020 at 9:33pm
वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय हार्दिक बधाई सर
Comment by Harash Mahajan on September 16, 2020 at 9:32pm

मेरी आरज़ू, बंदगी तुम समझ कर,

अदा फिर उम्मीदे वफ़ा कीजियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
35 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
38 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
44 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
46 minutes ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service