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मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,
निगाहों से तुम भी नशा कीजियेगा ।
सफ़र दिल से दिल तक लगे जब भी मुश्किल ,
दुआओं की फिर तुम दवा कीजियेगा ।
नज़र ज़ुल्फ़ों पे गर टिकें ग़ैरों की तो,
यूँ आँखों में नफ़रत अदा कीजियेगा ।
मुझे सोच हों चश्म नम तो समझना,
ये जज़्बात अपने अता कीजियेगा ।
ये है इल्तिज़ा मर भी जाऊँ तो इतनी,
ख़ुदा से न तुम ये गिला कीजियेगा ।
मेरी आरज़ू बंदगी तुम समझ कर,
अदा फिर उम्मीदें वफ़ा कीजियेगा ।
निगाहों में मेरी फ़क़त तेरी मंज़िल,
मुक़द्दर की अब इब्तिदा कीजियेगा ।
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हर्ष महाजन 'हर्ष'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरनीय समर कबीर सर,
मैं खुद भी असमंजस में था कि ग़ज़ल पोस्ट करूँ या नहीं । संतुष्टि नहीं थी लेकिन पोस्ट कर दी ग़ज़ल सोचा कि आपके मार्गदर्शन से इसे निखारने की कोशिश करूँगा । शायद ये कृति अपना कुछ अच्छा रूप ले ले ।
आपके दिए सुझाव पर फिर से कोशिश करता हूँ ।
सर आपने रचना पर अपना इतना वक़्त दिया उसके लिए कोटि कोटि धन्यवाद ।
सादर
जनाब हर्ष महाजन जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है ।
'मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,
निगाहों से तुम भी नशा कीजियेगा'
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, दूसरी बात ये कि महब्बत की इंतिहा नहीं होती, ग़ौर फ़रमाएँ ।
'सफ़र दिल से दिल तक लगे जब भी मुश्किल ,
दुआओं की फिर तुम दवा कीजियेगा'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं, और दुआओं की दवा कैसे होती है?
सानी उचित लगे तो यूँ कर सकते हैं:-
'तो फ़ौरन ख़ुदा से दुआ कीजियेगा'
'नज़र ज़ुल्फ़ों पे गर टिकें ग़ैरों की तो,
यूँ आँखों में नफ़रत अदा कीजियेगा'
ये शैर कथ्य की दृष्टि से कमज़ोर है, देखियेगा ।
'मुझे सोच हों चश्म नम तो समझना,
ये जज़्बात अपने अता कीजियेगा ।'
इस शैर का शिल्प कमज़ोर है,कथ्य भी स्पष्ट नहीं हुआ ।
'ये है इल्तिज़ा मर भी जाऊँ तो इतनी,
ख़ुदा से न तुम ये गिला कीजियेगा ।'
इस शैर का शिल्प कमज़ोर है,उचित लगे तो यूँ कर सकते हैं:-
'यही इल्तिजा है अगर मर भी जाऊँ
ख़ुदा से न कोई गिला कीजियेगा'
'मेरी आरज़ू बंदगी तुम समझ कर,
अदा फिर उम्मीदें वफ़ा कीजियेगा'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।
'निगाहों में मेरी फ़क़त तेरी मंज़िल,
मुक़द्दर की अब इब्तिदा कीजियेगा'
इस शैर का शिल्प,भाव,कथ्य कमज़ोर है ।
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और होंसिला अफ़ज़ाई के लिये बेहद शुक्रिया जनाब।
सादर ।
मेरी आरज़ू, बंदगी तुम समझ कर,
अदा फिर उम्मीदे वफ़ा कीजियेगा ।
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