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21.8.20

एकाकी मन........ 

झूठ है
एकांत में
सिर्फ एकांत होता है
एकाकी मन
वहीं शांत होता है
थक जाता है ये एकाकी मन
ज़िंदगी के जालों को
सुलझाते सुलझाते
अनकहे अहसासों को
दबाते दबाते
भावनाओं की गठरी को
उठाते उठाते
अंधेरों की स्याह चादर में
अपने ही साये
एकाकीपन की देह को
नोचते नज़र आते हैं
सच तो ये है
एकांत में अनचाहे बवंडर
एकाकी मन के
एकाकीपन को लील जाते हैं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on August 26, 2020 at 8:34pm

आदरणीय आशीष यादव जी सृजन पर आपकी हृदयग्राही प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by आशीष यादव on August 26, 2020 at 12:05am

बिल्कुल सच्चे भावों को इस कविता के माध्यम से आपने प्रकट किया है। इस अच्छी कविता पर बहुत बहुत बधाई।

Comment by Sushil Sarna on August 24, 2020 at 1:40pm
आदरणीय अमीरुद्दीन जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया ।
Comment by Sushil Sarna on August 24, 2020 at 1:38pm
आदरणीय बृजेश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।
Comment by Sushil Sarna on August 24, 2020 at 1:35pm
आदरणीय समर कबीर जी, आदाब, सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है ।
Comment by Samar kabeer on August 22, 2020 at 6:34pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 22, 2020 at 10:10am

बढ़िया कविता आदरणीय सरना जी....

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 22, 2020 at 9:31am

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब उत्तम विचारपूर्ण रचना हुई है बधाई स्वीकार करें। सादर। 

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