For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शर्तों की शतरंज (लघुकथा)

"पापा! मुझे मोबाइल चाहिए, और अभी की अभी चाहिए|" सोनू ने जिद्द पकड़ ली थी।

"पागल हो गए हो क्या सोनू? यह क्या मोबाइल की जिद्द लिए बैठे हो, कोई मोबाइल-शोबईल नहीं मिलेगा,चुप-चाप खाना खाओ|" डाँटते हुए सोनू के पापा ने कहा|

लेकिन सोनू नहीं माना और हाथ-पैर पटकते हुए रोने लगा|

"रोता रह! पर तुम्हारी हर जिद्द नहीं मानूंगा | अभी पिछले महीने ही तुम्हें साइकिल दिलवाई है।" पापा का भी पारा चढ़ गया।

सोनू के दादा जी जो अब तक चुप थे,मुस्कुराकर बोले," आखिर बेटा तुम्हारा ही है| तुमने भी तो....."

"पर पिताजी, मैंने ऐसी जिद्द तो कभी नहीं की थी और माँ भी आपका ही साथ देती थीं।" बचपन की स्मृतियों की बात करते हुए वे थोड़े नम्र हो गए थे|

सोनू भागता हुआ आया और उसने अपने दादाजी से पूछा," क्या पापा भी ऐसे ही जिद्द करते थे? क्या वे भी आपसे ऐसे ही मांगते थे? तो फिर वे मुझे क्यों नहीं दिलाते .....?" और सोनू फिर उदास हो गया|

"ओह सोनू, अब तुमको कैसे समझाऊं बेटा,पर सुनो, जब मैं आठवीं कक्षा में था मैंने तुम्हारे दादाजी से घड़ी की मांग करी थी, और तुम्हारे दादाजी ने मेरी दादीजी को ५० रुपये निकाल कर दे दिए और उनसे कहा, जब मैं क्लास में अव्वल आऊं तब मुझे वह रुपये दे दिए जाएँ.. और मैं जुट गया पढाई में और परीक्षा के बाद जब रिजल्ट हाथ में आया तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा,मैं सिर्फ क्लास में ही नहीं अपितुः पूरी स्कूल में अव्वल आया था, मैं दौड़ता हुआ घर आया यह सोचता हुआ कि अब तो मेरी घड़ी पक्की, पर घर आकर जब देखता हूँ तो अम्मा ने मुझे घड़ी दिखाई और कहा कि बाहर आँगन में देखो तुम्हारी साइकिल भी रखी हुई है, मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। मैं जीत चुका था, और बेहद खुश था और मैं तुम्हारे दादाजी को तलाशने लगा। घर के हर कोने में उनको तलाशा पर वह नहीं मिले, मैं उनको प्यार करना चाहता था, पर घर में उनको न पाकर मैं उदास हो गया, तो तुम्हारी दादीजी बोली," बेटा,तुम्हारे दादाजी ने डबल ड्यूटी करने का फैसला कर लिया है, घड़ी और साईकल की किश्तें चुकानी हैं न।"

मैं तब तक घड़ी पहन चुका था, मैंने तुम्हारी दादी से पूछा,"तो पिताजी अब कब मिलेंगे माँ?"

वे बोली," अब रात १२ बजे के पहले तो क्या....|"

"ओह... तब तक तो मैं सो जाता हूँ, और पिताजी तो सुबह तडके ही निकल जाते हैं... | " अब तो मैं रोने लगा था, मुझे मेरे पिताजी चाहियें माँ"
मैंने घड़ी उतार दी ...

सोनू जो अब तक अपने पापा से उनका बचपन सुन रहा था उनकी गोद में बैठ गया और बोला," तो क्या आप भी ............?" नहीं पापा मुझे मेरे पापा ज्यादा प्यारे हैं.... और वह रोते रोते उनकी गोद में सो गया|

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 30, 2018 at 2:16pm

आदरणीया कल्पना जी ..सन्देश प्रद रचना के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें...लघु कथा की बिधा की मुझे खास जानकारी नहीं है इसलिय मन में उठे बिचारों को साझा करना चाहता हूँ .....सोनू फिर उदास हो गया....पिता से और दादा से बात की प्रक्रिया में बिशेष अंतराल नहीं था ..सोनू तो उदास था ही . फिर उदास हो गया .....ये तो तब होता जब इस अंतराल के बीच में कुछ सुखद होता .....सोनू के पिता ने तो साईकिल माँगी ही नहीं थी तो पिताजी साइकल क्यों ले आये....ये तो उन्होंने अपनी मर्जी से किया था ...संभवतः साइकिल महगी होगे इसलिए सोनू के पापा ने अपने पापा से माँगी ही नहीं...सोनू ने तो साइकिल माँगी जो उसके पिता ने दे दी और उन्हें ओवर टाइम करना भी नहीं पड़ा ..मतलब वो देने की स्थिति में थे ..और जबसाईकिल दे दी तो घड़ी तो बहुत छोटी चीज है ..इसके लिए भी उन्हें शायद ओवर टाइम न करना पड़े.....सोनू के पापा साईकिल मांगते औरर उनके पिता को इस जिद को पूरा करने के लिए आभाव वश दूसरी शिफ्ट में काम करते तो यह दृष्टान्त सोनू के अपने पापा से साईकिल के बाद मोटर साकिल मांगने पर उचित लगता...मेरी प्रतिक्रिया गलत भी हो सकती है ..यदि सही हो तो मार्गदर्शन की कृपा करें सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on March 30, 2018 at 2:46am

आद0 कल्पना जी सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा लिखी आपने। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Nita Kasar on March 29, 2018 at 1:28pm

बच्चे गीले मिट्टी की तरह होते है,मातापिता जैसे चाहे उस साँचे में उन्है ढाल लें ।बच्चों को मालूम होना चाहिये उनकी ज़िद पूरी करने के लिये  पिता को कितना कष्ट कितना उठाना पड़ सकता है ।बाल मनोविज्ञान पर आधारित प्रेरक कथा के लिये बधाई आद० कल्पना भट्ट जी ।

Comment by Samar kabeer on March 28, 2018 at 12:10pm

बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने ,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service