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"कृष्णावतार"

रास छंद। 8,8,6 मात्रा पर यति। अंत 112 से आवश्यक और 2-2 पंक्ति तुकांत आवश्यक।)

हाथों में थी, मात पिता के, सांकलियाँ।
घोर घटा में, कड़क रही थी, बीजलियाँ
हाथ हाथ को, भी ना सूझे, तम गहरा।
दरवाजों पर, लटके ताले, था पहरा।।

यमुना मैया, भी ऐसे में, उफन पड़ी।
विपदाओं की, एक साथ में, घोर घड़ी।
मास भाद्रपद, कृष्ण पक्ष की, तिथि अठिया।
कारा-गृह में, जन्म लिया था, मझ रतिया।।

घोर परीक्षा, पहले लेते, साँवरिया।
जग को करते, एक बार तो, बावरिया।
सन्देश छिपा, हर विपदा में, धीर रहो।
दर्शन चाहो, प्रभु के तो हँस, कष्ट सहो।।

अर्जुन से बन, जीवन रथ का, स्वाद चखो।
कृष्ण सारथी, रथ हाँकेंगे, ठान रखो।
श्याम बिहारी, जब आते हैं, सब सुख है।
कृष्ण नाम से,जग से मिटता, हर दुख है।।


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Ashish shrivastava on August 16, 2017 at 9:52pm
सुंदर है रचना , आदरणीय वासुदेव जी ।
बीजलियाँ अनुचित और खटकने वाला शब्द लग रहा है । क्या इसकी जगह दामिनियाँ नहीं हो सकता ?
Comment by Mohammed Arif on August 15, 2017 at 8:09pm
आदरणीय वासुदेव अग्रवाल जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब के सुझाव पर गौर करें ।
Comment by Samar kabeer on August 15, 2017 at 2:35pm
पूर्व रचनाकारों का मुझे पता नहीं,लेकिन मात्रा बिठाने के लिये क्या सही शब्द को बिगाड़ कर अपनी सुविधानुसार करना उचित है ?
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on August 15, 2017 at 1:34pm
आ0 समर कबीर साहिब आपका हृदय से आभार। मुझे बीजलियाँ का भी प्रयोग पुर्व के रचनाकारों द्वारा मिला है। वहाँ मात्रा के हिसाब से बीजलियाँ आवश्यक है क्योंकि 6 मात्रा चाहिए। सादर
Comment by Samar kabeer on August 15, 2017 at 12:00pm
जनाब बासुदेव अग्रवाल'नमन'जी आदाब,बहुत उम्दा रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
दूसरी पंक्ति में 'बीजलियाँ'कि "बिजलियाँ"?

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