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दो अतुकांत - वैचारिक रचनाएँ ( गिरिराज भंडारी )

1- आंतरिक सम्बन्ध

**************

मैंने पीटा तो दरवाज़ा था
हिल उठी साँकल ...

खड़ खड़ कर के .... 

और..

आवाज़ अन्दर से आयी

कौन है बे.... ?

बस...

मै समझ गया

तीनों के आंतरिक सम्बन्धों को

******

 2- आग और पानी

*****************

आग बुझे या न बुझे

आग लग जाना दुर्घटना है, या साजिश

किसे मतलब है

इन बेमतलब के सवालों से

 

ज़रूरी है,  अधिकार ....

पानी पर

सारा झगड़ा इसी का है

 

उस समय भी जब आग लगी हो

और उस समय भी जब आग न लगी हो

 

क्यों कि ,

ये पानी उतना ही छिड़कना चाहते हैं , जितने से

घर तो बच जाये .. जलने से  

पर,

आग न भुझे  ...

सुलगती रहे अन्दर ही अन्दर   

फूँक भी देते हैं कभी धीरे से

मुँह छिपा के ...

 

क्यों कि

ज़रूरी है,

जूतों का औकात मे रहना ...

सर तो टोपी के लिये है न ।

************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:12am

आदरनीय सुशील भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:11am

आदरनीय बसंत भाई , मुखर सराहना के लिये हृदय से आभारी हूँ ।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2017 at 4:26pm

क्यों कि
ज़रूरी है,
जूतों का औकात मे रहना ...
सर तो टोपी के लिये है न ।

वाह आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब दोनों ही प्रस्तुतियां कमाल की हैं .... भावों की अद्भुत सम्प्रेषणता से लबालब इन प्रस्तुतियों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 3:42pm

अनुपम भावाभिव्यक्ति, आनंद आ गया पढ़कर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 9, 2017 at 9:33am

आदरणीय नरेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by narendrasinh chauhan on May 8, 2017 at 12:14pm

बहोत सुन्दर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 8, 2017 at 10:24am

आदरनीय सतविन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार । आपने सही कहा .. टंकण की त्रुटियाँ हैं .... मै सुधार कर लूँगा .. आभार आपका ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 9:53am
आदरणीय गिरिराज सर उत्तम अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई।
कुछ शब्द गलत टँकित हुए हैं शायद यथा:
"मैंने" पीटा तो,"इन" बेमतलब के सवालों, ये पानी उतना "ही" छिड़कना।
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2017 at 8:22pm

आदरणीय आरिफ भाई , रकुअना पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2017 at 8:21pm

आदरणीय सुरेश भाई , रचना की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

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