For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बदले-बदले लोग

============

 

बहुत दिन हो गए,

हमने नहीं की फिल्म की बातें।

न गपशप की मसालेदार,

कुछ हीरो-हिरोइन की।

न चर्चा,

किस सिनेमा में लगी है कौन सी पिक्चर?

 

पड़ोसी ने नया क्या-क्या खरीदा?

ये खबर भी चुप।

सुनाई अब न देती साड़ियों के शेड की चर्चा।

कहाँ है सेल, कितनी छूट?

ये बातें नहीं होती।

 

क्रिकेटी भूत वाले यार ना स्कोर पूछे हैं।

न कोई जश्न जीते का,

न कोई शोक हारे तो।

 

इधर बच्चें भी छोटा भीम जैसे भूल बैठे हैं।

कि अब तो मॉल का भी गेम वाला जोन तनहा है।

सुबह की सैर में

तबियत कहाँ है ख़ास बातों में?

हँसी या छेड़खानी भी नदारद है मरासिम से।

 

यहाँ बच्चे, जवां, बूढ़े, सहेली, यार ही सारे;

सभी मशगूल हैं,

चिंताएं ख़ुद सिर पर उठाने में।

यहाँ अब मीडिया के साथ सोशल मीडिया घायल।

 

कोई है पक्ष में,

कोई खड़ा प्रतिपक्ष में लेकिन

सभी की बात का मुद्दा वही रहता है अक्सर ही।

किसी इक शख्स में मसरूफ है अहले-वतन यारब।

नहीं जो आदमी पूरा,

बनाया है ख़ुदा उसको।

 

मेरे घर में करें बच्चे,

सियासत की अजब बातें।

कहाँ खोई है,

बीवी की हँसी की,

प्यार की बातें।

कि

दफ्तर हो या यारों की हो महफ़िल,

बस यही आलम।

 

लगे है-

ज़िन्दगी को लोग जीना भूल बैठे हैं।

कि अब अलमस्त रहने के बहाने भूल बैठे हैं।

सभी की है नज़र,

आखिर कहाँ खोए हैं अच्छे दिन?

कहाँ जम्हूरियत के नाम पर चाहे थे ऐसे दिन?

 

यहाँ बदला वतन कितना?

नहीं मालूम है लेकिन।

यकीनन ही,

वतन में बदले-बदले लोग रहते हैं।

 

-------------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------------

 

Views: 874

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 27, 2016 at 12:15pm

आदरणीय महेन्द्र जी, आपकी प्रशंसा पाकर आश्वस्त हूँ. प्रस्तुति के मूल का संधान कर इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर

Comment by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 7:58pm
//किसी इक शख्स में मसरूफ है अहले-वतन यारब। नहीं जो आदमी पूरा, बनाया है ख़ुदा उसको।// इस व्यक्तिपूजा से उपजे मानवीय संवेदना के संकट को जिस आसानी से आपने इस कविता में उतारा है वह काबिले तारीफ़ है आदरणीय मिथिलेश सर। देश के वर्तमान हालातों को बयां करती यह बेहतरीन प्रस्तुति है। मेरी तरफ से आपको ढेरों बधाई। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 3:54pm

आदरणीय गोपाल सर, आपकी प्रशंसा पाकर मुग्ध हूँ. प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 3:53pm

आदरणीय बृजेश जी, प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 3:53pm

आदरणीया सीमा जी, प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 3:52pm

आदरणीया प्रतिभा जी, प्रस्तुति के अधिकांश प्रतीक आधुनिक जीवन शैली से ही सम्बंधित है.  प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 3:51pm

आदरणीय आशीष यादव जी, प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 3:50pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी, प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 3:50pm

आदरणीया कल्पना जी, प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 3:49pm

आदरणीय समर कबीर जी, इस प्रयास पर आपकी प्रशंसा पाकर अभिभूत हूँ. प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service