For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल~मुहब्बत की राहों में

(122 122 122 122)

ये सोचा है समझा है परखा बहुत है।
मुहब्बत की राहों में धोखा बहुत है

ये मदमस्त तेरी निगाहें कसम से
तिलिस्म इनमें कोई तो रक्खा बहुत है।

जो छिपता है मुझसे उसे क्या है मालूम?
उसे मैंने छिप छिपके देखा बहुत है

न जन्नत की बातें न दैर-ओ-हरम ही
दिवानों को तेरा झरोखा बहुत है।

किसी रोज मिलने कभी तुम भी आओ
तेरे शहर ने मुझको देखा बहुत है।

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 998

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 19, 2016 at 12:31pm
आदरणीय भाई, जान गोरखपुरी जी.. बहुत दिनों बाद आपकी कोई ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ। हार्दिक बधाई।

आपकी ग़ज़ल पर हुई चर्चा से जो ज्ञानवर्धन हुआ, उसके लिए हार्दिक धन्यवाद आपको।।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 19, 2016 at 10:18am
आ.तस्दीक़ अहमद जी ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया,मेरे ख्याल से हरेक बह्र के अंत में यह छूट मिलती है।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 18, 2016 at 9:36pm

जनाब जान गोरखपुरी साहिब ,  अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , शेर दर शेर मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । शेर 3 का उला मिसरा देख लीजिए ,  मालूम का म बढ़  रहा है ----शुक्रिया

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 18, 2016 at 6:13pm
आ.सुशील सरजी ग़ज़ल उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 18, 2016 at 6:12pm
आ.रामबली गुप्ता जी ग़ज़ल की सराहना उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 18, 2016 at 6:11pm
बेहद शुक्रिया सर,यही परिवर्तन मतला में करता हूँ,आ.भाई केवल प्रसाद जी का भी तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ जिन्होंबे इस बारीक दोष को बतया।
Comment by Samar kabeer on May 18, 2016 at 2:13pm
जनाब केवल प्रसाद जी ठीक फरमा रहे हैं, मतले के किसी भी एक मिसरे का क़ाफ़िया बदल देने से ये दोष दूर हो सकता है, मिसाल के तौर पर :-

ये सोचा है परखा है समझा बहुत है

बाक़ी के क़ाफ़िये बदस्तूर रहेंगे और आपका क़ाफ़िया अलिफ़ का हो जाएगा।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2016 at 11:34pm
आ.समर सर एक और शंका समाधान चाहता हु आपसे आ. भाई केवल प्रसाद का कहना है क़ि काफ़िया दोष युक्त है उनका विचार है कि-----ये सोचा है समझा है पर……. / खा बहुत है।
मुहब्बत की राहों में धो……./ खा बहुत है
काफिय/ रदीफ
ये मदमस्त तेरी निगाहें कसम से
तिलिस्म इनमें कोई तो रक् ..........खा बहुत है।

यानि खा काफ़िया न रहकर रदीफ़ हो जा रहा है??कृपया मार्गदर्शन करें।
मेरे ख्याल से खा पर बना काफ़िया ठीक है..क्योंकि दोनों मूल शब्द हैं परखा और धोख़ा। अगर ये योजित शब्द होते तो बात और थी।
अपनी समय के सुविधानुसार मार्गदर्शन करने कृपा करें।सादर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2016 at 11:24pm
ह्म्म्म आ.बिलकुल मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ की जहां तक हो सके दोष से बचना चाहिए। लयभंग से मेरा तात्पर्य है क़ि 'तू'एकदम से खटकता सा लग रहा है,तुम को तू करने के अलावा कोई चारा दिख भी नही रहा है या तो पूरा मिसरा ही बदलना पड़ेगा। उला में तुम सम्मानजनक शब्द के रूप में सम्बोधन कर रहा है जबकि सानी में तेरे शब्द शह्र को उपेक्षा के साथ बिम्बित कर रहा है...जो मुझे उचित सा लग रहा है।फिर भी देखता हूँ किसी और रूप में दुरुस्त करने को। सादर।
Comment by Samar kabeer on May 17, 2016 at 11:04pm
हसरत जयपुरी ने फ़िल्मी गानों में बारहा ऐसा किया है इसलिये मैं यह तो नहीं कह सकता कि यह दोष कितना माननीय है लेकिन दोष तो फिर भी दोष है,ना रहे तो अच्छा है ,वरना चलने को क्या है ,बड़े भाई लोगों की ग़ज़लों में ईताए जली का दोष भी चल ही रहा है ,और हाँ ,'तू' शब्द से लय भंग नहीं हो रही है,आप चाहें तो शैर में अपने तरीक़े से सुधर कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
2 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service