For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हॉल कमरे के बीचों बीच मौजूद गोल मेज़ पर आज फिर गंभीर मंत्रणा का एक और दौर जारी थाI विभिन्न देशों से आए प्रतिनिधिमंडल काफ़ी दिन गुज़र जाने के बाद भी किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाने में असफल रहे थेI जब भी उन्हें आशा की कोई किरण दिखाई देती तो कोई-न-कोई नई समस्या सामने आ खड़ी होतीI माहौल में निराशा तारी होने लगी थी जो सभी के चेहरों से साफ़ साफ़ झलक रही थीI
"लगता है इस बार हमारे मंसूबे कामयाब नहीं होंगेI" सिकंदर महान ने घोर निराशा में कहाI
"दरअसल वो देश अब वैसा नहीं रहा जैसा हमारे पूर्वजों के ज़माने में हुआ करता थाI" नादिर शाह ने एक ठंडी आह भरते हुए कहाI
"जबसे सभी रियासतें एक ही झंडे के तले आ गई हैं, तबसे वो मुल्क भी एक हो चुका हैI" महमूद गज़नवी ने ने अपने मन की बात कहीI
"सीधा हमला करना भी तो मुश्किल है, क्योंकि वह भी अब हथियारों से पूरी तरह लैस हो चुका हैI" चंगेज़ खान ने हाथ मलते हुए कहाI "पुराना वक़्त होता तो इसे लूटना बहुत आसान होताI" अहमद शाह अब्दाली के स्वर में भी निराशा थीI
"अब किया क्या जाए? हम हाथ पर हाथ रखकर भी तो बैठ नहीं सकतेI" मोहम्मद गौरी ने थोड़ा उत्तेजित होते हुए कहाI
"बिल्कुल सही कहा, अगर यूँ ही चुपचाप बैठे रहे तो सोने की चिड़िया हाथ से निकल जाएगीI" सिकंदर ने हाँ में हाँ मिलते हुए कहाI
"समस्या यह भी है कि अगर हमनें एक भी क़दम ग़लत उठाया तो हम दुनिया भर के मीडिया की नज़र में आ जाएंगेI" एक फ्रांसीसी जनरल ने चेतावनी भरे स्वर में चिंता व्यक्त कीI
बातचीत का सिलसिला एक बार फिर से थम गयाI कमरे में पूरी तरह चुप्पी फैलने ही वाली थी कि एक गोरी महिला मेज़ के पास आकर बोली:
"देखिए साहिबान! उम्र और तजुर्बे में मैं आप सबसे बहुत छोटी हूँ, लेकिन इस समस्या का एक उपाय है मेरे दिमाग़ मेंI इजाज़त हो तो कुछ कहूँI"
उस महिला के इन शब्दों से सबको आशा की एक धुँधली सी किरण दिखाई देने लगीI
"हाँ हाँ! जो कहना है खुल कर कहो ईस्ट इंडिया कंपनी! आख़िर तुमसे ज़्यादा उस उस देश के बारे में और कौन जानता हैI" तैमूर लंग ने उत्साह भरे स्वर में पूछाI
"सबसे पहले हमें अपनी जंगी पोशाकों को त्यागना होगा और व्यापारियों के भेष में वहाँ धावा बोलना होगाI"
"लेकिन ऐसा क्यों?" अहमद शाह अब्दाली ने आश्चर्य भरे स्वर में पुछाI
"क्योंकि अब उन्हें डरा धमका कर नहीं, बल्कि एक मंडी बनाकर ही लूटा जा सकता हैI"
"लेकिन उसे मंडी बनाकर हम बेचेंगे क्या?" यह स्वर सामूहिक थाI
"हम उन्हें सपने बेचेंगेI उन्हीं सपनों की चकाचौंध से उन्हें अंधा करेंगेI और फिर उसी अंधेपन का फ़ायदा उठाकर सोने की चिड़िया का एक-एक पंख नोच लेंगेI"
"लेकिन इस मुश्किल काम में वहाँ हमारा साथ कौन देगा?"
गोरी महिला ने मेज़ पर दोनों हाथ रखे, और चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट लाते हुए उत्तर दिया:
"भारत की सत्ता में मौजूद मीर जाफर और जयचन्द के वंशजI"
----------------------------------------------------------------------
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 965

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on June 9, 2018 at 10:51am

//"हम उन्हें सपने बेचेंगेI उन्हीं सपनो की चकाचौंध से उन्हें अँधा करेंगेI और फिर उसी अंधेपन का फायदा उठाकर सोने की चिड़िआ का एक एक पंख नोच लेंगेI"// सच में, आज भी यही हो रहा है. और जिन्हें हमने निगरानी के लिए बिठा रखा था, वही लोग जयचंद बने हुए हैं. इस कमाल की लघुकथा के लिए ढेर सारी बधाई प्रेषित है सर. सादर.

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 4, 2016 at 4:22pm

अहा | अद्भुत कथा | यही तो हुआ था | कितनी अद्भुत सोच है आपकी आदरणीय |  बधाई सर |

Comment by Shubhranshu Pandey on March 18, 2016 at 6:09pm

आदरणीय योगराज सर,

बचपन याद आ रहा है. जब अशोक महान और अकबर को एक ही समय भारत पर राज करवा देता था. बाद में समयावधी के अन्तर ने बात साफ़ की. लेकिन आपकी रचना बचपन के उसी अनभिज्ञता को एक तर्क के साथ सामने रखा है. आठवीं शताब्दी से आज तक के कालखण्ड को समेट कर देश के गुलामी के उन कारणॊं को स्पष्ट कर दिया है. आज भी  बचना बस जयचन्दो और मीरजाफ़रों से है. 

सुन्दर कथा.

सादर.  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:36am

आपकी सदशयता और श्लाघा के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आ० सुशील सरना जीI  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:35am

हार्दिक आभार आ० रामबली गुप्ता जीI 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:34am

दिल से शुक्रिया भाई उस्मानी जीI 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:33am

हार्दिक आभार आ० डॉ विजय शंकर जीI 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:33am

भाई सतविंदर कुमार जी, आपकी सराहना के लिए दिल से शुक्रिया अदा करता हूँI 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:32am

मोहतरम समर कबीर साहिब, लघुकथा ने आपको मुतास्सिर किया यह जान कर सुकून मिलाI दिल से शुक्रियाI  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 18, 2016 at 11:32am

बहुत बहुत शुक्रिया कांता रॉय जीI 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service