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ए नीम के बृक्ष!
न तान अपना इतना बड़ा वक्ष।
आज तेरी छाॅंह में बैठे ये मानव,
कल, कुल्हाड़ी लेकर
एकदम न काटकर 
तेरी इन गाॅंठों को, छाल को 
ले जायेंगे.....
टोंच टोंच कर, काट काट कर, खोद खोद कर,
जला भून कर फेक देंगे कडुवी कहकर।
और तेरी कोमल अंगुलियाॅं
कुचल कुचल कर फेकेंगे।
तेरी फली फूली निमोरियाॅं सुनहरी
पीली पीली...
ये कहेंगे, सुंदर तो हैं पर कड़ुवी हैं....
थू... थू... थू.... बेकार हैं।
पर!
न घबड़ा..... तेरी दाबत के लिये
कौए?
एक दो नहीं ‘‘बहुत से‘‘
पहले से तैयार हैं।
29अप्रैल 1971
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित 
डॉ टी आर शुक्ल , सागर। 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2015 at 4:59pm

कुछ और कोशिश दरकार थी .  नीम के ही सन्दर्भ में   सादर .

Comment by Harash Mahajan on August 21, 2015 at 5:41pm
आदरणीय नीम पर इतनी सूंदर प्रतुति पर दिली बधाई ।
Comment by Dr T R Sukul on August 19, 2015 at 11:14pm

आद ०  जवाहरलाल जी आपने सही कहा है इसीलिए बार बार गुणों की कदर करने की सलाह दी जाती है। 

Comment by Dr T R Sukul on August 19, 2015 at 11:09pm

Thank you resp. Mithilesh ji for appreciation.

Comment by Dr T R Sukul on August 19, 2015 at 11:07pm

Thank you Res.Nikore sir for your appreciation.

Comment by Dr T R Sukul on August 19, 2015 at 11:06pm

आ. कान्ता जी सारगर्भित और विश्लेषणात्मक टीप के  लिए धन्यवाद।   

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 19, 2015 at 1:12pm

पकने के बाद निमौरियां लगती है मीठी,

गुणकारी फिर भी,

नीम का दातौन करे साफ़ दातों को,

छाया में होता शीतलता का अहसास

इसके छाल होते हैं ख़ास 

इसलिए न उठा कुल्हारी 

कौए ने उठा ली है निमौरी 

निमौरी के बीज ..क्या है यह भी चीज!

देखें सकारात्मक भी ...सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 18, 2015 at 2:15pm

आदरणीय Dr T R Sukul जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है.

Comment by vijay nikore on August 18, 2015 at 1:32pm

नीम पर इस सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:46am

आ० कान्ता बहन की बात से सहमति जताते हुए इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई .

कृपया ध्यान दे...

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