For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- छुट्टियों के दिन

मस्कुराते हैं छुट्टियों के दिन
कम ही आते हैं छुट्टियों के दिन

कंपकंपाते हैं छुट्टियों के दिन  

थरथराते हैं छुट्टियों के दिन 

देखो सचमुच में थक गये हैं हम,
ये बताते हैं छुट्टियों के दिन


सैंकडों काम छोड कर बाकी
भाग जाते हैं छुट्टियों के दिन


सपनों के बोझ में दबे बच्चे
खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन


चार दिन घर में रह नहीं पाये,
अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन

आदतें और थकान,आलस को 

और बढाते हैं छुट्टियों के दिन  

दफ़्तरों में छुपे कबूतर को 

मुंह चिढाते हैं छुट्टियों के दिन  

जैसे बरसों से भूखे-प्यासे थे  

खूब खाते हैं छुट्टियों के दिन 

सूबे सिंह सुजान

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 589

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on January 15, 2015 at 11:54pm

 मिथिलेश वामनकर,जी शुक्रिया.....आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 11:40pm

चार दिन घर में रह नहीं पाये,
अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन...

आदरणीय सूबे सिंह जी  बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करे 

Comment by सूबे सिंह सुजान on January 15, 2015 at 11:32pm

 Dr Ashutosh Mishra, जी, मेरी ओर से आपको विशेष धन्यवाद . छुट्टियों में लिखी गई इस रचना पर आप महानुभावों के विचार आये तो दिल को अच्छा ही लगा। 

Comment by सूबे सिंह सुजान on January 15, 2015 at 11:30pm

 khursheed khairadi, जी भाई साहब, आभार है आपकी पसंदगी पर

Comment by सूबे सिंह सुजान on January 15, 2015 at 11:29pm

 somesh kumar, जी ,आपको रचना अच्छी लगी पढकर मन को और भी अच्छा लगा। आभार

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 6, 2015 at 5:31pm

आदरणीय सुजान जी 

सैंकडों काम छोड कर बाकी 
भाग जाते हैं छुट्टियों के दिन

जैसे बरसों से भूखे-प्यासे थे  

खूब खाते हैं छुट्टियों के दिन

सपनों के बोझ में दबे बच्चे 
खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन...बेहतरीन ग़ज़ल के इन अशारो के लिए बिसेष रूप से मेरी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 11:21am

सपनों के बोझ में दबे बच्चे 
खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन


चार दिन घर में रह नहीं पाये,
अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन

आदरणीय सूबे सिंह सर बहुत ख़ूब , बहुत याद आते हैं जब बीत जाते हैं छुट्टियों के दिन |सादर अभिनन्दन 

Comment by somesh kumar on January 6, 2015 at 10:47am

बहुत भाते हैं छुट्टियों के दिन /

मन को हल्का करने वाली इस सुंदर रचना पर बधाई 

Comment by सूबे सिंह सुजान on January 5, 2015 at 11:00pm

 डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव,    जी आपका हृादिक आभार प्रकट करता हूँ।  कृपया पधारते रहें।

Comment by सूबे सिंह सुजान on January 5, 2015 at 10:58pm

 मिथिलेश वामनकर     

जी आपकी प्रतिक्रिया पर आपका धन्यवाद बहुत अच्छा  लगा आपका पधारना। 

यह टुप्पणी ही हमें राह दिखाती हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
19 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service