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एक कप चाय (लघुकथा)

"यार एक कप चाय मिल जाती तो मजा आ जाता I"  
पतिदेव का हुक्म सुन घर की साफ़ सफाई करके थकी हारी पत्नी रसोईघर की तरफ मुड़ गयी.
साहब सोफे पर बैठ कर टीवी ऑन कर मजे से चैनल बदलते हुए कह रहे थे:
"आज तो यार बहुत थक गए, दीपावली पर बाज़ार जाना, उफ्फ्फ्फ़ ...."
पति की हां में हां मिलाते हुए पत्नी चाय देकर वापिस मुड़ गई और अपने काम में लग गयी !

"मौलिक व अप्रकाशित"

आलोक

मथुरा

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Comment

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Comment by Alok Mittal on November 3, 2014 at 10:56am

आदरणीय Shubhranshu Pandey जी...बहुत बहुत आभार आपका

Comment by Alok Mittal on November 3, 2014 at 10:55am

आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी .....बहुत बहुत शुक्रिया ..आपका आशीर्वाद मिलता रहे इसी तरह ...


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 10:46am

अपनी अपनी थकावट को सुंदरता से शब्द दिए हैं, सच है कि सब कुछ करने के बावजूद भी पत्नी की थकावट सेकेंडरी ही मानी जाती है।  इस सुंदर अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है।

Comment by Shubhranshu Pandey on November 2, 2014 at 8:05pm

आदरणीय आलोक जी,

हिन्दुस्तान में रहने का ये भी एक पहलु है. जहां महिलाओं के काम को ना तो समझा जाता है और ना ही उसका नाम होता है. विदेशों में घर के काम को भी देश के GDP में जोड़ दिया जाता है. एक बार फ़िर से कथा के लिये बधाई..

सादर.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 31, 2014 at 7:11pm

बढ़िया लघुकथा, हार्दिक बधाई स्वीकारें आ0 आलोक मित्तल जी.

Comment by Alok Mittal on October 31, 2014 at 4:08pm

आदरणीय Saurabh Pandey भाई जी.....हम तो कभी नहीं आये...पर आपको रचना पसंद आई इसका आभार ..अगर ईश्वर ने चाह तो आ भी जायेंगे


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:21am

ए भाई, आप मेरे घर कब आये थे.. ?!!

Comment by Alok Mittal on October 28, 2014 at 10:09am

आदरणीय rajesh kumari जी....हौसला बढाने के लिए दिल से आभार आपका

बात बिलकुल सही है ...थोडा हम समझे थोडा तुम समझो तो जिंदगी की गाड़ी चल निकले ...

Comment by Alok Mittal on October 28, 2014 at 10:08am

आदरनीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.....हौसला बढाने के लिए शुक्रिया आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 28, 2014 at 9:40am

इस अति की सीमा पार हो गई तभी तो  महिलाओं ने बीड़ा उठाया आज इससे उलट सीन भी देखने को मिल रहे हैं यदि दोनों एक दूसरे की परेशानी दिल से समझे तो परिवार में खुशहाली रहे ,बढ़िया लघु कथा ,बधाई आपको. 

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"वाह .. एक पर एक .. जय हो..  सहभागिता हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अशोक…"
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"क्या बात है, आदरणीय अशोक भाईजी, क्या बात है !!  मैं अभी समयाभाव के कारण इतना ही कह पा रहा हूँ.…"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी प्रस्तुतियों पर विद्वद्जनों ने अपनी बातें रखी हैं उनका संज्ञान लीजिएगा.…"
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"आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपकी कहमुकरियों ने मोह लिया.  मैंने इन्हें शमयानुसार देख लिया था…"
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"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
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