For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हदें बेहतर है पर ..

बदलना

अच्छा है ....पर एक हद तक

 

और वो हद

खुद तय करनी होती है

ऐसी हद जिसके भीतर

किसी का दिल न टूटे

कोई रोये न....बीते लम्हें याद कर

वादे याद कर मलाल न करे

 

वो हद जो

दूर करे पर नफरत न पलने दे

याद रहे पर इंतज़ार न रहने दे

 

रिश्तों में बदलना

कभी भी सुख नहीं देता

चुभन...दर्द...अफ़सोस और

बेचैनी लिए

पल-पल ज़िन्दगी गिनता है 

 

इन सब से परे

कितना आसान है

किसी बदलाव से पहले

बात करना .... गलतफ़हमियाँ मिटाना

हदों के पायदानों से निकल

कुछ कदम ''साथ'' चलना और

कुछ छूटने से पहले

अपने हासिल को ''अपना कहना''

हक जताना...गिला करना और

मनाना .....

 

हदें बेहतर हैं पर

बदलाव से पहले...हदें चुनने से पहले

झांके अपनों के मन में भी

शायद फिर

बदलाव की जरुरत न लगे.....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

प्रियंका....

Views: 415

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 11, 2014 at 5:37pm

हदें बेहतर हैं पर

बदलाव से पहले...हदें चुनने से पहले

झांके अपनों के मन में भी

शायद फिर

बदलाव की जरुरत न लगे.....

बहुत ही सुन्दर प्रियंका जी!

Comment by MAHIMA SHREE on September 10, 2014 at 10:34pm

इन सब से परे

कितना आसान है

किसी बदलाव से पहले

बात करना .... गलतफ़हमियाँ मिटाना

हदों के पायदानों से निकल

कुछ कदम ''साथ'' चलना और

कुछ छूटने से पहले

अपने हासिल को ''अपना कहना''

हक जताना...गिला करना और

मनाना .....................................सही कहा ,बहुत खूब ..हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 10, 2014 at 9:34pm
कविता के साथ साथ विचार भी अच्छे हैं आदरणीय प्रियंका सिंह जी , बधाई.
क्योंकि ---
हद भी एक चीज होती है
हदें हद से गुजर जाएँ
और बेहद हो जाएँ तो ,
बेहद तकलीफ होती है ,
हदें भी अपनी हद में रहें
तो सुखद एहसास होती हैं
Comment by vijay nikore on September 9, 2014 at 4:29pm

//हदें बेहतर हैं पर

बदलाव से पहले...हदें चुनने से पहले

झांके अपनों के मन में भी

शायद फिर

बदलाव की जरुरत न लगे.....//

आपकी कविता के खयालों से प्रभावित हूँ. विशेषकर उनकी ताज़गी से, आपकी कलम के सुगम प्रवाह से।

पढ़ते-पढ़ते जैसे कोई कटु सत्य सरलता से गले के नीचे उतर गया, और सीख भी दे गया...

//झांके अपनों के मन में भी, शायद फिर, बदलाव की जरुरत न लगे// ...  किसी भी अवस्था में हम प्राय: अपने किए को ठीक मानते हैं, अपनी सोच/अपने विचार को निर्विवाद मानते हैं, और तनिक भी नहीं सोचते कि ऐसा करते हुए हमने स्वयं पर अहं की एक और परत लगा ली है। अत: हम कितने बड़े झूठ में जीते हैं?...और आपकी कविता ने कितना बड़ा सच सामने कर दिया है।

इस अच्छी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय प्रियंका जी। आशा है आपकी और रचनाएँ शीघ्र मिलती रहेंगी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 8, 2014 at 1:20pm

प्रियंका जी

बड़ी सुन्दर  और परिपक्व कविता i बेहतरीन शब्द संयोजन i मुग्ध मन i   वाह--- ! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service