For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

 १२२२      १२२२     १२२२       १२२२

हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं

डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं

मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी

कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको

समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं

सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब

तभी हर बात में कहने लगे वो  हम तुम्हारे हैं

अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब

बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं

संजू शब्दिता  मौलिक व अप्रकाशित

Views: 989

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanju shabdita on July 7, 2014 at 6:48pm

आदरणीय सौरभ सर मेरी यह कोशिस आपको बहुत अच्छी लगी ... इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 12:07am

एक बहुत अच्छी कोशिश के लिए दिल से दाद संजूजी.

सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब

तभी हर बात में कहने लगे वो  हम तुम्हारे हैं.............  इस शेर पर विशेष दाद दे रहा हूँ..

Comment by sanju shabdita on June 29, 2014 at 9:52am

आ0 प्राची दी बहुत बहुत शुक्रिया आपका

Comment by sanju shabdita on June 29, 2014 at 9:52am

आदरणीय जितेंद्र गीत जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by sanju shabdita on June 29, 2014 at 9:51am

आदरणीय उमेश जी आपका हार्दिक आभार

Comment by sanju shabdita on June 29, 2014 at 9:51am

आदरणीय गिरिराज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 26, 2014 at 3:38pm

दिल को छू लेने वाले अशआर कहे हैं प्रिय संजू शब्दिता जी 

चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको

समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं

अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब

बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं

ये दो शेर ख़ास पसंद आये 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 10:16am

मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी

कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं............बहुत खूब, आजकल यही सब कुछ पा रहा है अपनों से इंसान

बहुत लाजवाब गजल कही आपने आदरणीया संजू जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by umesh katara on June 21, 2014 at 5:41pm

आदरणीया सुन्दर गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 21, 2014 at 11:26am

आदरणीया संजू जी , खूब सूरत ग़ज़ल हुई है , आपको ढेरों बधाइयाँ ।

मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी

कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं ------ बहुत खूब , आदरणीया , बधाई ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service