For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गा कोयल गा...
गीत प्रेम के
गा कोयल.....


मन के सुप्त तारों को जगा.

प्रकृति के वक्ष के आर-पार
अनु विस्फ़ोटक के सप्त स्वर में
अपनी गायन शक्ति भर
तीव्र सुर में गा कोयल......

ग्रीष्म की तपती धूप है
कर बादलों का आह्वान
बादल कुछ ऐसा बरसे
तरल हो धरती का कण-कण
निकले सीप से मोती
सुख-समृद्धि की बरसात हो
गा कोयल.....

बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ...

तू है तो गाता है जीवन
आकाश मुस्काता है
हवा बिखेरता कै प्राण
जड़-चेतन में
मंत्र फूँक ऐसा....
‘जीवमेव सरदः शतम् का.’
गा कोयल ......
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 610

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 28, 2014 at 4:33pm

बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ...

समयानुकूल बहुत ही प्यारी रचना सुन्दर सन्देश कोमल भाव बधाई हो आप को
आदरणीया कुंती जी जय श्री राधे
भ्रमर ५

Comment by vijay nikore on June 9, 2014 at 6:06pm

//बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ...//

अति सुन्दर प्रार्थना लिए आपकी रचना ने प्रभावित किया... आपको हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 5:45pm

अच्छे दिनों की कल्पनाएँ करती सकारात्मक बिम्बों से सजी इस कविता के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कुन्तीजी.

सादर शुभकामनाएँ.. .

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on June 8, 2014 at 10:49pm

अत्यंत भावपूर्ण रचना....

Comment by विजय मिश्र on June 7, 2014 at 5:58pm
यह सुमधुर गीत किसी मंगलाचरण से कम नहीं जो बिपन्नता में भी आशा ज्योत थामें कोयल के माध्यम से समूचे संसार को गाने के लिए उकसाती है | अनेक साधुवाद कुंतीजी|
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 5, 2014 at 10:53pm

बादल कुछ ऐसा बरसे

तरल हो धरती का कण-कण

निकले सीप से मोती

सुख-समृद्धि की बरसात हो

गा कोयल.....

बहुत सुन्दर और प्यारी रचना
भमर ५

Comment by coontee mukerji on June 5, 2014 at 5:00pm

प्रिय साथियो! आप सभी को हार्दिक आभार.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2014 at 12:12pm

आदरणीया  coontee जी

कोयल का आलंबन लेकर आपने  'सर्वे भवन्तु सुखिनः ' का जो आह्वान किया है वह ह्रदय स्पर्शी है  i  शुभेच्छु i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2014 at 11:06am

अभिलाषाओं का ये दिवास्वप्न पूर्ण हो कोयल अपनी कूक से इस धरा की पीड़ा हरे ...बहुत सुन्दर लिखा है आ० कुंती जी ,बधाई आपको. 

Comment by Meena Pathak on June 5, 2014 at 10:35am

बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ......................आमीन  :-)  गा कोयल गा गीत प्रेम के 

इतनी सुन्दर प्रस्तुति हेतु सादर बधाई स्वीकारें दी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service