For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम तुम्हें फिर.../गज़ल/कल्पना रामानी

मात्रिक छंद

असुरों के सुर उच्च हुए हैं, मौन मंत्र सिखलाना होगा।

राम, तुम्हें  फिर से कलियुग में, भारत भू पर आना होगा।

 

ओढ़ चदरिया राम नाम की, घूम रहे चहुं ओर अधर्मी।

धर्म-पंथ उनको दिखलाकर, गूढ़-ज्ञान  फैलाना होगा।

 

मानवता का ढोंग रचाकर, रावण ताज सजा  बैठे हैं,।

आग लगा उनकी लंका में, जय का दीप जलाना होगा।

 

मानवता के मूल्य गिर चुके,  रक्षक ही भक्षक हैं सारे।

मूल्य रहें अक्षत हर मन के, ऐसा शंख बजाना होगा।

 

मर्यादाएँ आब खो चुकीं,  बीच भँवर रिश्तों की किश्ती।

हे मर्यादा पुरुषोत्तम! वो  बेड़ा पार लगाना होगा।

 

भोग रहे वनवास घरों में, मात-पिता रहकर एकाकी,

संतानों के सुप्त हृदय में,  सेवा-भाव जगाना होगा। 

 

आज तुम्हारे शासन की, हे रघुनंदन! है ओट ज़रूरी,

पामर खाएँ चोट, तुम्हें कुछ ऐसा चक्र चलाना होगा।  

मौलिक व अप्रकाशित       

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on May 3, 2014 at 9:24pm

 आदरणीय सौरभ जी, सलीम जी, लक्ष्मण जी,प्रिय बृजेश जी, अनुराग जी, आदरणीया प्राची जी, रचना का  सुंदर टिप्पणियों द्वारा मान बढ़ाने के लिए आप सबका हृदय से आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 1:33am

हर शेर अपनी सार्थकता सिद्ध करता हुआ है. मात्रिक ग़ज़ल की गेयता निर्बध हो यही कसौटी है.

दाद कुबूल करें ..

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 19, 2014 at 4:17pm

बहुत उत्कृष्ट भावनाओं को शब्द मिले हैं...

आपकी लेखनी के आगे नत हो जाती हूँ आदरणीया कल्पना जी..सभी अश'आर पसंद आये 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 14, 2014 at 9:07am

आदरणीय कल्पना दीदी ,

एक सशक्त, भावपूर्ण और आदर्शवादी रचना के लिए तहेदिल से हार्दिक बधाई .

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 13, 2014 at 1:28pm

वाह सशक्त रचना बेहद सुन्दर
सादर

Comment by SALIM RAZA REWA on April 12, 2014 at 10:08pm

आदरणीया---
 वाह बहुत सुंदर  बड़ी खूबसूरती से

शब्दों का खूबसूरत इस्तेमाल .  बहुत बहुत मुबारकबाद

Comment by Vindu Babu on April 12, 2014 at 10:17am
मर्म को स्पर्श करने वाले भावों से रची रचना ने मन मोह लिया आदरणीया.
प्रार्थना करती हूं...शीघ्र ही खोई संस्कृति की पुनर्स्थापना हो.
सादर
शुभ शुभ
Comment by बृजेश नीरज on April 11, 2014 at 7:29pm

वाह! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई दीदी!

Comment by कल्पना रामानी on April 11, 2014 at 6:38pm

आ॰ मीना जी, राजेश जी,  सविता जी, जितेंद्र जी,  गीतिका जी, अखिलेशजी,  गिरिराज जी,  अजयजी,  मुकेश जी, आप सबका रचना को स्नेह मिला, लिखना सार्थक हुआ। आप सबका हृदय से आभार/सादर 

आ॰ गिरिराज जी, किसी बहर को परिभाषित करना मेरे लिए कठिन है। यह बहर 222222की बंदिश में कही जाने वाली है जिसे अब 121=22...के अनुसार कहने की छूट मिल चुकी है। काफिया,रदीफ़ यथावत रखते हुए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि लय भंग न हो। इसलिए इसे अपनी समझ से मैंने मात्रिक छंद कहा। अधिक जानकारी विद्वान गजलकार ही दे सकते हैं।/सादर

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 10, 2014 at 6:12pm

आदरणीया कल्पना दीदी
वाह  वाह बहुत सुंदर भाव .. पढ़कर दिल खुश हो गया.. बड़ी खूबसूरती से निभाया है आपने बे'हर को.. शब्दों का खूबसूरत इस्तेमाल .  बहुत बहुत मुबारकबाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service