For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं तारों से बातें करता हूँ

 

जब गहन तिमिर के अवगुंठन में
धरती यह मुँह छिपाती है
मैं तारों से बातें करता हूँ
झिल्ली जब गुनगुनाती है.
(2)
फुटपाथों पर भूखे नंगे
कैसे निश्चिंत हैं सोये हुए
उर उदर की ज्वाला में
जाने क्या सपने बोये हुए.
(3)
दो बूंद दूध का प्यासा शिशु
माँ की आंचल में रोता है
रोते रोते बेहाल अबोध
फिर जाने कैसे सो जाता है!
(4)
क्या उसके भी सपनों में
कोई, सपने लेकर आता है
क्या उसके जीवन का सरगम
यह विश्व चराचर गाता है?
(5)
मेरे सपने तो टूट गये
कुछ बिखर गये अंधेरे में
कुछ तारे बनकर लटक गये
दूर गगन के डेरे में.
(6)
जो बिखर गये वो बिखर गये
मैं अब उन्हें नहीं चुनता
चंद किरणों के धागों से मैं
नये सपनों का जामा बुनता.
(7)
भूखा शिशु सो सकता है
होठों पर मुस्कान लिये
धरती का अवगुंठन हटता
प्राची का वरदान लिये.
(8)
अब मैं नहीं होता निराश
प्रकृति जब गीत सुनाती है
मैं तारों से बातें करता हूँ
झिल्ली जब गुनगुनाती है.
(मौलिक तथा अप्रकाशित)

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on December 8, 2013 at 5:27am

आदरणीय आपकी रचना बड़े ही मार्मिक विन्दुओं को उभार रही है,हर एक बंद हृदयस्पर्शी...

सादर बधाई आपकी इस भावपूर्ण रचना के लिए।

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2013 at 2:36am

जिस शैली में इस अभिव्यक्ति का संवर्धन हुआ है वह शाब्दिकता को गेयता की कसौटी पर इसे संतुष्ट करने के प्रयास में निरत दिखी है. आपकी संवेदना और आपके शब्द-संचयन सदा से सचेत रचनाकर्ता के आंतरिक गुण को निरुपित करते हैं, आदरणीय शरदिन्दुजी. यह रचना उससे अछूती नहीं है.

आपको इस प्रस्तुति हेतु हृदय से बधाई .. .

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 6, 2013 at 2:55am

आदरणीय भाई शिज्जु शकूर और अनंत शर्मा जी, आप दोनों का हार्दिक आभार. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 6, 2013 at 2:52am

//आपकी यह रचना मेरे लिए पहली है i//

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी, सम्भवत: आप 'पहली' नहीं 'पहेली' कहना चाहते हैं. क्यों आप ऐसा सोचते हैं यह मेरे लिये पहेली है. आपने कहा है मेरी रचना में कुंठा है....खुशी होती यदि इस मंतव्य को और स्पष्ट कर देते...अर्थात कहाँ और किस बात की कुंठा! रचना में छुपी मेरी 'अनुभूति' और 'संवेदना' को आपने अनुभव किया, मैं धन्य हो गया, मेरी रचना सफल हुई. हार्दिक आभार आपका. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 6, 2013 at 2:42am

आदरणीया प्राची जी, मुझे इस बात से बहुत संतोष है कि आप मेरी रचना की गहराई तक गयी हैं. आपने कहा है कि मेरी यह रचना समतुकांत छंद रचना की ओर एक प्रयास है. मैं पूरी विनम्रता के साथ कहना चाहूंगा कि ऐसा कोई प्रयास मैंने नहीं किया. सहज ढंग से जो भाव मेरे अंदर सुगबुगाते हैं मैं उन्हीं को कभी-कभी व्यक्त कर देता हूँ. इस प्रक्रिया में मेरी अभिव्यक्ति जो आकार लेती है उसका रूप क्या होगा यह मैं स्वयम नहीं जानता. अत: मेरी रचना भविष्य में किधर जाएगी यह कहना लगभग असम्भव है.

अतुकांत और तुकांत कविता के समर्थकों के बीच जो वैचारिक रस्साकसी चलती रहती है मैं उससे बहुत दूर हूँ.मुझे दोनों तरह की रचनाएँ अच्छी लगती हैं बशर्ते रचना में सुंदर भाव हों, कोई संदेश हो, कलात्मक सौंदर्य हो. भाव-विहीन कोई भी रचना पद्य होना तो दूर, गद्य भी नहीं हो सकती. इससे अधिक कुछ भी कहना मेरे लिये अनुचित होगा क्योंकि मुझे इस बारे में ज्ञान ही नहीं है....फिर भी जब कुछ विद्वत्जन कहते हैं कि अतुकांत रचना करने वालों को सात जन्म तक नरक भोगना पड़ेगा तब उनके सोच की दीनता पर हँसी भी आती है और अफ़सोस भी होता है देखकर कि वे कितने संकुचित विचारों वाले हैं.

आपने  वर्तमान रचना में मेरी भावनाओं को ढूँढ़ लिया इसके लिये मैं विशेषरूप से प्रसन्न और आभारी हूँ. आपकी प्रतिक्रिया की मुझे सदैव प्रतीक्षा रहती है क्योंकि उसमें गम्भीरता होती है, तत्व होता है, तथ्य होता है और प्रोत्साहन के अकुंठ संकेत होते हैं.

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 6, 2013 at 2:10am

आदरणीय आज़ाद और विजय मिश्र जी, हार्दिक आभार.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 1:18pm

आदरणीय सर बहुत ही सुन्दर कविता है भाव ह्रदय को स्पर्श कर गए, इस सुन्दर कृति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 3, 2013 at 11:38pm

आदरणीय शरदिंदु सर बहुत अच्छी कविता हुई है इस ह्रदयस्पर्शी रचना के लिये आपको बधाई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 5:19pm

आदरणीय शारदेन्दु जी

प्रणाम i

     आपकी यह रचना मेरे लिए पहली है i  मुझे याद आता है गोष्ठी में आपने कहा था कि मै अपने को कवि नही समझता i मेरी समझ में हर वह व्यक्ति  कवि है जिसके  अन्दर  संवेदना है i  हमारा साहित्य तो गद्य को भी काव्य मानता है i प्रेमचंद के गोदान को हम एपिक  {महाकाव्य )मानते है i  आदरणीय -- कुंठत्वमायाति गुणः कवीनाम् i साहित्य विद्या श्रम वर्जितेषु i  ------आपकी  रचना में भी कुंठा  झलकती है  i  कविता में जो भाव  है उनमे गहरी अनुभूति और संवेदना है i  मेरी शुभकामनाये i   सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2013 at 3:35pm

आदरणीय डॉ० शरदिंदु जी 

आपकी इस प्रस्तुति को मैं आपकी रचनाशीलता में उत्तरोत्तर संवर्धन के क्रम में...अतुकांत और छंदबद्ध के मध्य एक सेतु की तरह देख रही हूँ.. निश्चय ही यह आपका कोइ पहला समतुकांत प्रयास है.. जो मुग्धकारी है, आह्लादकारी है.

आपका संवेदनशील हृदय रात के अन्धकार में तारों से बाते करता है..और बातें भी एक फुटपाथ पर सो जाने वाले भूखे व्यक्ति की..

आपकी संवेदनशीलता  माँ के सूखे आँचल में दुधमुहे भूख से बिलखते बच्चे की वेदना को महसूस करती है .....और एक कदम आगे बढ़ कर किसी निर्बल के सपनों में भी क्या सपने कोइ सजाता है, ऐसा चिंतन प्रस्तुत करती है.

क्या उसके भी सपनों में
कोई, सपने लेकर आता है....................बहुत सुन्दर 
क्या उसके जीवन का सरगम
यह विश्व चराचर गाता है?........................मर्मस्पर्शी 

और सपनों का टूटना बिखरना फिर बुने जाना और फिर स्वप्नों की सारहीनता देख मन का शांत हो ठहर सा जाना और कहना 

अब मैं नहीं होता निराश!

बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं आदरणीय शरदिंदु जी ..जिसके लिए बहुत बहुत बधाई. 

आप शीघ्र ही मात्राओं पर सधी हुई समतुकांत प्रस्तुतियां मंच पर हम पाठकों के लिए प्रस्तुत करेंगे...आपका यह प्रयास कुछ इसी ओर संकेत करता सा दीखता है..

वैसे मात्रिकता पर हुआ तनिक सा प्रयास इस प्रस्तुति के शिल्प को भी बेजोड़ गठन दे सकता है... :)

सादर शुभकामनाएं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service