For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक मार्केटिंग मैनेज़र की आत्मव्यथा

मैं सपने बेचता हूँ।
आज के, कल के,
और कभी कभी तो बरसों बाद के भी।

इन सपनों की ज़रुरत नहीं तुम्हें।
इनका अहसास मैंने दिलाया है,
तुम्हारे जेहन में घुसकर...
तुम्हारे डर को कुरेदकर।

मैं और मुझ जैसे सैकड़ों लोग,
झांकते हैं,
तुम्हारे गुसलखानों में,
तुम्हारी रसोई में,
तुम्हारे ख्वाबगाहों में।

मुझे पता है,
कितनी दफा ब्रश करते हो तुम,
कैसे रोता है तुम्हारा बच्चा गीली नैपी में, और
क्यूँ तुम्हारे चेहरे की चमक खो गयी है,
इन धूल भरी गर्म आँधियों में।
मुझे ये भी पता है,
कि तुम्हे नींद नहीं आती आजकल
क्योंकि तुम्हारे पड़ोसी के घर
तुमसे बड़ी कार खड़ी हो गयी है।

झांकता हूँ मैं तुम्हारे निजी पलों में,
तुम्हारे ठहाकों, तुम्हारे आंसूओं में।
बस जानने के लिए तुम्हारी संवेदनाओं का स्वरुप।
मेरे लिए तुम एक सैंपल हो,
इस विस्तृत देश की संवेदनाओं का प्रतिनिधि..
बस और कुछ नहीं।

मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,
कि तुम्हारी निजता खतरे में है,
कि तुम में से कई चीख रहे हैं,
इन अनावश्यक सपनों के बोझ तले।
मैं इत्मीनान से बोर्डरूम में बैठ, तुम्हारी संवेदनाओं से खेलता हूँ।
उन्हें अलग अलग खेमों में रख कर,
ढूंढता हूँ, डराने के नए नए तरीके।

कई दफे हार जाता हूँ,
तुम जब मानते नहीं बातों को,
जब तुम्हें डर नहीं लगता,
जब तुम सपने नहीं देखते।

ऐसे दिनों में कोसता हूँ तुम्हे, तुम्हारी संवेदनहीनता पर।

पर ऐसे दिनों के लिए,
ताकीद कर रखा है ऑफिस बॉय को,
कमरे से आईना हटा ले।

आईना शर्मिंदा करता है मुझे,
उन दिनों मेरे चेहरे पे,
तुम्हारी बेचारगी उभर आती है।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 618

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arvind Kumar on August 5, 2013 at 10:33pm

धन्यवाद  D P Mathur जी,sharadindu mukerji जी,JAWAHAR LAL SINGH जी, जितेन्द्र 'गीत' जी, बृजेश नीरज जी, बसंत नेमा जी, अरुन शर्मा 'अनन्त' जी, aman kumar जी, विजय मिश्र जी एवं MAHIMA SHREE जी. आभार।

आपकी टिप्पणियां सदैव मुझे अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती रहेंगी।

Comment by MAHIMA SHREE on August 5, 2013 at 10:09pm

बाजारवाद  का विद्रूप  चेहरा और आम आदमी का उस चक्रव्यूह में फ़साने की साजिश , नाकामी का डर... बहुत ही शानदार प्रस्तुति ...पहली बार आपको पढ़ रही हूँ .. बहुत खूब .. बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on August 5, 2013 at 6:53pm
"मेरे लिए तुम एक सैंपल हो,
इस विस्तृत देश की संवेदनाओं का प्रतिनिधि..
बस और कुछ नहीं "

और ये भी

"आईना शर्मिंदा करता है मुझे,
उन दिनों मेरे चेहरे पे,
तुम्हारी बेचारगी उभर आती है।" -- कितना कुछ कह गया है!आत्महीन व्यवहारिक जगत और फिर भावनाओं का बिखराव .मर्मस्पर्श करता है .अतिसुन्दर रचना .बधाई अरविन्दजी .
Comment by aman kumar on August 5, 2013 at 2:13pm

बहुत ही सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 5, 2013 at 1:57pm

अरविंद भाई बेहद सुन्दर रचना रची है आपने हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by बसंत नेमा on August 5, 2013 at 10:55am

आदरणीय अरविन्द जी, बहुत बढ़िया रचना .बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 10:39am

बहुत ही सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 5, 2013 at 9:51am

बहुत बढ़िया रचना आदरणीय अरविन्द जी, आपने युवा वर्ग की सम्वेदनाओ को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया, हार्दिक बधाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 5, 2013 at 5:15am

सही बात लिखी है आपने!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on August 5, 2013 at 12:17am

//झांकता हूँ मैं तुम्हारे निजी पलों में,
तुम्हारे ठहाकों, तुम्हारे आंसूओं में।
बस जानने के लिए तुम्हारी संवेदनाओं का स्वरुप।
मेरे लिए तुम एक सैंपल हो,
इस विस्तृत देश की संवेदनाओं का प्रतिनिधि..
बस और कुछ नहीं।//.....दिल से लिखी गयी कविता की बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ हैं ये. जीविका निर्वाह की लाचारी में आज के समाज का संवेदनशील युवावर्ग अपने अंदर किस तरह घुट रहा है ! आपने इस घुटन को शब्द देकर नयी आवाज़ पैदा की है....बहुत खूब...ऐसे  ही लिखते रहें...शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service