For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आंसू ...........ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं

ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं
बिना बोले कभी आंसू बहुत कुछ बोल जाते हैं
समझने के लिए इनको मोहोब्बत का सहारा है
......नहीं तो देखने वाले तमाशा ही बनाते हैं ||

सिसक हो बेवफाई की कसक चाहे जुदाई की
पिघलता है सभी का दिल हवन की आहुती जैसे
ख़ुशी नमकीन पानी से अधिक रंगीन बनती है
कभी आंसू लगे सैनिक कभी हो सारथी जैसे ||

कहीं जब दूर जाए लाडला माँ से जुदा होकर
बहाए प्रेम के मोती दुआएं जब निकलती हैं
करे जब याद माँ का घर बहू जो बन गयी बेटी
मिलन की प्यास आँखों में सम्हाले ना सम्हलती है ||

सुहागन सेज पर बैठी अकेली याद में उनकी
जुदाई की अमावास में अकेली रात को रोये
कभी अंगड़ाइयाँ देती गवाही प्रेम उत्सव की
तपिश बीते हुए कल की जलाए आग जो सोये ||

कभी जब भाव वंदन का बना- जगदीश के घर पर
बरसता है समर्पण प्रेम का मोती निगाहों में
समझने के लिए बचता नहीं कुछ गीत गोपी का
किशन को मांगती क्यूँ थी बुलाती थी दुआओं में ||

हजारों रंग के एहसास हैं- लाखों कहानी है
कोई कीमत समझता है कोई कीमत लगाते हैं
ये मोती प्यार के भी हैं कभी तकरार के भी हैं
ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं ||

समझने के लिए इनको मोहोब्बत का सहारा है
......नहीं तो देखने वाले तमाशा ही बनाते हैं ||
..............मनोज

Views: 570

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 3, 2013 at 10:00pm

कहीं जब दूर जाए लाडला माँ से जुदा होकर
बहाए प्रेम के मोती दुआएं जब निकलती हैं........सुन्दर.

आदरणीय मनोज जी सादर, आंसू ख़ुशी और गम दोनों ही जगह बराबरी से उपस्थिति देते हैं. सुन्दर रचना. बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 6:25am

मनोज भाईजी, बहुत-बहुत खूब !

ख़ुशी नमकीन पानी से अधिक रंगीन बनती है
कभी आंसू लगे सैनिक कभी हो सारथी जैसे ||

इन पंक्तियों के लिए विशेष-विशेष बधाई.. .

जब भाव वंदन का बना- जगदीश के घर पर .. इस पंक्ति को देखियेगा, रुक्ने सदर में १२ के वज़्न का कोई शब्द छूट रहा है. संभवतः वह शब्द कभी हो सकता है...  कभी जब भाव वंदन का. बना- जगदीश के घर पर .. .

सादर

Comment by MAHIMA SHREE on February 2, 2013 at 10:29pm

सिसक हो बेवफाई की कसक चाहे जुदाई की
पिघलता है सभी का दिल हवन की आहुती जैसे
ख़ुशी नमकीन पानी से अधिक रंगीन बनती है
कभी आंसू लगे सैनिक कभी हो सारथी जैसे ||

बहुत ही अच्छी रचना  आदरणीय मनोज बधाई आपको..

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:15pm

क्या बात है सुन्दर रचना हेतु बधाई आपको आदरणीय

Comment by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:50pm

बहुत ही भावपूरण रचना है..हार्दिक बधाई मनोज bhai 

Comment by vijay nikore on February 2, 2013 at 2:57pm

भाव बहुत अच्छे लगे।

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2013 at 12:06pm

सुन्दर भावो की अभ्व्यक्ति के लिए बधाई मनोज नौटियाल जी 

Comment by Aarti Sharma on February 2, 2013 at 12:15am

बहुत ही भावपूरण रचना है..हार्दिक बधाई मनोज जी..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service