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श्री डेंगू जी : "एक अमर गाथा"

यूं तो हमारे देश में कई क्रांतिकारी कई देशभक्त आये| कोई नोटों तक पहुंचा कोई गुमनामी में खो गया, किसी को चर्चे मिले कोई किताबों में सो गया| मगर उन्होंने अपना कर्तव्य कभी नहीं छोड़ा, आजादी के बाद भी अनेक क्रांतिकारी यदा-कदा देश में आते-जाते रहे| जब-जब शासन अपनी शक्तियों और कर्तव्य को भुला कर कुछ भी करने में अक्षम रहा, वे देशभक्त उन्हें कर्तव्य बोध कराते रहे|
   ऐसा ही कर्तव्य बोध हाल ही में हमारे देश के एक वीर क्रांतिकारी द्वारा सरकार को कराया गया| ये वीर कोई और नही बल्कि परम साहसी, अत्यंत हठीले, बेशर्मीले और सुरों के सरताज श्री डेंगू महाराज थे| इन्होने अपने प्राणों की परवाह किये बगैर ही अनेक भारतीयों के हत्यारे 'कसाब' को काट खाया| वीर डेंगू जी ने जब देखा कि शासन और प्रशासन इतने वर्षों के बाद भी उस हत्यारे को सजा दे पाने में अक्षम है, तो ये बीड़ा उन्होंने स्वयं उठाया!
 जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आर्थर मार्ग कारागार में सुरक्षा काफी कड़ी है, शासन की मर्ज़ी के बिना वहां बिरयानी तो क्या हवा भी नही जा सकती, बिना आज्ञा वहां जाने का अर्थ है या तो गोली का शिकार होना! या फिर कसाब का भोजन बनना! किन्तु फिर भी यदि निश्चय दृढ़ हो, अटल संकल्प हो और देश के लिए कुछ कर जाने की अखंड भावना हो तो बड़े-बड़े पहरे भी किसी को नही रोक सकते|
     ऐसी ही दृढ़ता और ओजस्वी भावनाएं लिए, वीर डेंगू अक्तूबर २०१२ की एक रात आर्थर मार्ग के लिए निकल पड़े| वे जानते थे कि शासन ने कसाब रक्षा हेतु बड़े-बड़े महा अस्त्र-शस्त्र, जैसे:- मार्टीन, आलआउट,गुड नाईट, मैक्सो, कछुआ, खरगोश, बिल्ली आदि आदि तैयार रखें होंगे| किन्तु उन्हें उस समय सिर्फ देशवासियों की भावनाओं की चिंता थी| वे सभी घेरों और हथियारों से जूझते-बचते कसाब तक पहुँच ही गये! और उन्होंने आनंद में डूबे कसाब पर जम कर हमला बोला और चुन चुन कर काटा| इससे कसाब विचलित हो गया और बौखला कर कारागार प्रबंधन और सुरक्षा कर्मियों को डांटने लगा इसके बाद तुरंत ही प्रबंधन द्वारा सभी अस्त्र-शस्त्र डेंगू जी की और मोड़ दिए गये और यथा संभव हमले किये गये| बताते हैं करीब एक घंटे तक वीर डेंगू जी कसाब और प्रबंधन से लड़ते रहे| वे भागे नहीं और लड़ते लड़ते ही शहीद हो गये| उनका योगदान अविस्मर्णीय है|
   घायल कसाब को शासन ने तुरंत ही उपचार हेतु भेज दिया जिससे उस दुष्ट की जान तो बच ही गयी परन्तु डेंगू जी के प्रयास सचमुच बड़े थे| डेंगू जी के जीवन के बारे  में इतिहासकार ज्यादा नहीं जान पाए; किन्तु जितना उल्लेख मिलता है उसमें यही है कि डेंगू जी अत्यंत साधारण जीवन जीते थे| उनका जन्म कोर्डेटा धर्म की अर्थ्रोपोड़ा जाति के, एक मध्यम वर्गीय मच्छर परिवार में हुआ था| उनके पिता अपने काल के महान संगीतकार थे, और माँ एक गायिका थीं| बचपन से ही देशभक्ति के गीत गुनगुनाने वाले वीर डेंगू जी अपने माता पिता से दूर पले बढे, गायन के शौक के कारण वे मुंबई चले गये किन्तु जब उन्होंने देश की दुर्दशा देखी तो उनसे रहा न गया और उन्होंने सब कुछ छोड़ कर देश के लिए कुछ करने का संकल्प उठाया|
   उनके करीबी बताते हैं  कि २६/११ के हमले के बाद शासन की उदासीनता ने उनका जीवन एक दम बदल कर रख दिया और वे इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गये|
   मैं आशा करता हूँ कि परमवीर श्री डेंगू जी से अन्य सभी सांप, बिच्छू, बन्दर, कातर, छिपकली एवं विषखापर जैसे फ़ालतू ठलुआ और उद्दंड समुदाय के लोग प्रेरणा लें और देशहित के लिए कसाब व अन्य बंद अपराधियों (जिन पर कि शासन और प्रशासन किन्कर्त्वयविमूढ़ की स्थिति में रहता है) पर अपने अपने स्तर से हमला करें और देश को मुक्ति दिलाने का प्रयास करें|
 जैसा कि आप जानते हैं कि भारतीय मनुष्य समुदाय को व्यवस्था ने इस स्तर का छोड़ा ही नही कि कुछ कर सकें, तो भारतीय जनमानस की उम्मीदें अब आप पर ही हैं| जय भारत!

डेंगू दादा अमर रहें

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Comment by Pushyamitra Upadhyay on November 12, 2012 at 11:22am

sadar dhanyavaad rajesh didi


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 11, 2012 at 2:51pm

हास्य व्यंग्य के माध्यम से निकम्मे प्रशासन के गाल पर  एक जोरदार तमाचा दिया है बेहद प्रभाव शाली रचना हार्दिक बधाई प्रिय पुष्यमित्र  उपाध्याय जी 

Comment by Pushyamitra Upadhyay on November 10, 2012 at 9:33pm

aadarniya prasad sir, aadarniya baagi sir ....aapka aashish paakar abhibhut hoon .....pranaam sweekar kijiye

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 10, 2012 at 1:33pm
परम साहसी, अत्यंत हठीले, बेशर्मीले और सुरों के सरताज श्री डेंगू महाराज थे| 
जिसने अपने प्राणों की परवाह किये बगैर ही अनेक भारतीयों के हत्यारे 'कसाब' को काट  खाया 
सुन्दर हास्यपूर्ण रचना के लिए बधाई हो भाई पुष्यमित्र उपाध्यायजीआपकी  डेंगू भक्ति को भी नमन ।  

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 9, 2012 at 9:46pm

पुष्यमित्र जी, बहुत ही सरलता से बड़ी बात कह दी, ज्ञान, विज्ञान, हास्य, व्यंग सभी कुछ तो है इस लेख में, बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर |

Comment by Pushyamitra Upadhyay on November 9, 2012 at 9:39pm

aapka koti koti abhinandan karta hu saurabh pandey sir....aasheesh bnaaye rakhiye....main aur bhi achha likhunga


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 9, 2012 at 6:15pm

//उनका जन्म कोर्डेटा धर्म की अर्थ्रोपोड़ा जाति के, एक मध्यम वर्गीय मच्छर परिवार में हुआ था| उनके पिता अपने काल के महान संगीतकार थे, और माँ एक गायिका थीं| बचपन से ही देशभक्ति के गीत गुनगुनाने वाले वीर डेंगू जी अपने माता पिता से दूर पले बढे, गायन के शौक के कारण वे मुंबई चले गये किन्तु जब उन्होंने देश की दुर्दशा देखी तो उनसे रहा न गया और उन्होंने सब कुछ छोड़ कर देश के लिए कुछ करने का संकल्प उठाया|//

इस व्यंग्य रचना का स्तर अत्यंत समृद्ध है. जिस तरह से आज की विड़ंबनाओं पर करारा वक्रोक्ति बाण चला है वह एक सुधी पाठक दंग कर देता है.  एक विशिष्ट शैली में रचित इस व्यंग्य के लिये भाई पुष्यमित्र जी को हार्दिक बधाई.  आपकी रचनाधर्मिता से तथा आपके रचनाकर्म के प्रति यह मंच अत्यंत आशान्वित है.

शुभेच्छाएँ

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