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कैसी बहार यह आई मेरे शहर अंदर,
हर कली मुरझाई मेरे शहर अंदर.

खून सफ़ेद हुआ है रिश्ते नातो का,
किस ने ज़हर पिलाई मेरे शहर अंदर.

दूर आप क्या हुए जैसे हर तरफ,
तन्हाई तन्हाई मेरे शहर अंदर.

हम साए का साया नज़र नही आता,
हो गयी पीर पराई मेरे शहर अंदर.

प्यार के बादल उड़ कर कहाँ चले गये,
नफ़रत की घटा है छाई मेरे शहर अंदर.

आँसू पीड़ा दर्द की सौगात नयी,
हर मानव ने पाई मेरे शहर अंदर.

हर पल रोशन करने की वह बात करें,
अंधेरी रात है भाई मेरे शहर अंदर.

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Comment

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Comment by Hardam Singh Maan on October 26, 2010 at 8:34am
बागी जी, तिवारी जी, चतुर्वेदी जी और प्रीत जी हौंसला अफ़ज़ाई के लिए आप लोगों का बेहद अभारी हूँ. बहुत बहुत धन्यवाद.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2010 at 9:11pm
खून सफ़ेद हुआ है रिश्ते नातो का,
किस ने ज़हर पिलाई मेरे शहर अंदर.

वाह वाह वाह, क्या शे'र पढ़ी है हरदाम साहिब, कलेजा निकाल कर रख दिया, पूरी ग़ज़ल काफी उम्दा है, दाद कुबूल कीजिये श्रीमान |
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 25, 2010 at 11:31am
खून सफ़ेद हुआ है रिश्ते नातो का,
किस ने ज़हर पिलाई मेरे शहर अंदर.

बहुत ही बढ़िया रचना है हरदम साहब...और कुछ मैं नहीं लिख पाउँगा लेकिन जहाँ तक मेरी समझ है बहुत ही बढ़िया चित्रण किया है आपने....
शुभकामनाये..

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