शीत लहर की चोट से, जीवन है हलकान
आँगन जले अलाव तो, पड़े जान में जान।१।
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मौसम का क्या हाल है, पर्वत पूछे नित्य
ठिठुर चाँद सा हो गया, क्या बोले आदित्य।२।
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धुन्ध फैलती जा रही, ठिठुरन है चहुँ ओर
गर्म लहू का देह में, शिथिल पड़ गया जोर।३।
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चला न पलभर सिर्फ रख, एसी-कूलर बंद
तन कहता है खूब ले, कम्बल का आनन्द।४।
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फैला चादर धुन्ध की, हो मौसम गम्भीर
कहे सुखाओ रे! इसे, मिलकर सूर्य समीर।५।
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पीते गटगट चाय सब, पहने मोजे कोट
रोक न पाते पर कहीं, शीत हवा की चोट।६।
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तप में अब भी लीन है, पर्वत साधे मौन
शीत लहर को बोलिए, हक से डाँटे कौन।७।
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नगरों में हीटर जले, जलते गाँव अलाव
वे ठिठुरे फुटपाथ पर, जिनके भाग्य अभाव।८।
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फटी एड़ियाँ शीत में, किटकिट करते दाँत
मनभर खाकर भी वही, खाली-खाली आँत।९।
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मानव क्या हर जीव ही, करता है आलाप
तनिक बढ़े तो सुख मिले, सूर्य देव का ताप।१०।
***
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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