दोहा दशम . . . . . . रोटी
कैसे- कैसे रोटियाँ, दिखलाती हैं रंग ।
रोटी से बढ़कर नहीं,इस जीवन में जंग ।।
रोटी के संघर्ष में, जीवन जाता बीत ।
अर्थ चक्र में गूँजता , रोटी का संगीत ।।
रोटी का संसार में, कोई नहीं विकल्प ।
बिन रोटी के बीतता ,हर पल जैसे कल्प ।।
रोटी से बढ़कर नहीं, दुनिया में कुछ यार ।
इसके आगे दौलतें , इस जग की बेकार ।।
दो रोटी ने दोस्तो , क्या - क्या दिये अजाब ।
मुफलिस की तकदीर का, रोटी हसीन ख्वाब ।।
करवाती हैं रोटियाँ, जाने क्या-क्या काम ।
दो रोटी की आस में, बीती उम्र तमाम ।।
क्षुधित उदर की आस है, रोटी का हर ग्रास ।
जीवन तो इसके बिना , हरदम रहे उदास ।।
आदि अंत के रंग हैं, सब रोटी के संग ।
रोटी पूजा जीव की, रोटी जीवन अंग ।।
भिक्षुक से पूछो जरा , दो रोटी का मोल ।
भूख अगर हो सामने, नीयत जाती डोल ।।
गोल गोल ये रोटियाँ, तोड़ती ईमान ।
हर रिश्ते की मूल में, रोटी बड़ी महान ।।
सुशील सरना / 20-4-24
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