For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़

1212 1122 1212 22/112

हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़
तो हौसला रखो क्या हमसे भी बड़े हैं पहाड़ /1

है इनके दिल में नदी-सी बड़ी नमी लेकिन
मुग़ालता* है कि वालिद-से ही कड़े हैं पहाड़़/2 

पहाड़ कह के कोई तंज़ गर करे इन पर
तो आबशार बने अश्क से झड़े हैं पहाड़ /3

पहाड़ जैसी मुसीबत उठा के हम यूंँ चले
कि हम को देखते ही शर्म से गड़े हैं पहाड़ /4

हम अपने पैर गँवा कर भी चढ़ गए इन पर
हमारे जैसे तलातुम* से कब लड़े हैं पहाड़़/5 

पहाड़ काट के राहें भी हम बनाते हैं
हमारा अज़्म जो देखा तो गिर पड़े हैं पहाड़ /6

ज़मीं पै रह के बुलंदी की 'आरज़ू' है इन्हें
फ़लक-नशीनी* की ज़िद पर 'अबस+ अड़े हैं पहाड़ /7

स्वरचित व मौलिक

Views: 369

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 31, 2022 at 7:56pm

मोहतरम  Zaif जी आदाब ग़ज़ल तक पहुंचने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Zaif on December 24, 2022 at 2:27pm

मुहतरमा आरज़ू जी, भावपूर्ण ग़ज़ल, वाह! सादर

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 21, 2022 at 7:45pm

मोहतरम जनाब Ravi Shukla साहब आदाब, जी ! हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया, तरमीम की कोशिश करूंगी, इंशा अल्लाह ।

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 21, 2022 at 7:43pm

मोहतरम जनाब  Samar kabeer साहब आदाब, तरमीम का बहुत सारा काम निकल आया, कोशिश करूंगी सुधार कर सकूं, खूबसूरत इस्लाह के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया ।

Comment by Ravi Shukla on December 20, 2022 at 1:29pm

आदरणीया अंजुमन 'आरज़ू' जी , उम्दा ग़ज़ल कही है आपने बधाई स्वीकार करें I आदरणीय समर साहब की विस्तृत इस्लाह से ग़ज़ल और भी अच्छी हो जाएगी । गौर करियेगा । 

Comment by Samar kabeer on December 12, 2022 at 3:00pm

मुहतरमा अंजुमन 'आरज़ू' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

'हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़
तो हौसला रखो क्या हमसे भी बड़े हैं पहाड़ ' --मतले के दोनों मिसरों में मुझे रब्त की कमी लगी, ऊला का वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं है ,देखिएगा I 

'है इनके दिल में नदी-सी बड़ी नमी लेकिन
मुग़ालता* है कि वालिद-से ही कड़े हैं पहाड़़'--इस शे`र का ऊला मिसरा अच्छा है लेकिन सानी अभी मिहनत चाहता है, ग़ौर करें I 

'पहाड़ कह के कोई तंज़ गर करे इन पर
तो आबशार बने अश्क से झड़े हैं पहाड़ '--- इस शे`र के दोनों मिसरों में 'पहाड़' शब्द खटकता है आ, सानी अच्छा है लेकिन इस पर ऊला अभी नहीं लगा, ग़ौर करें I 

'पहाड़ जैसी मुसीबत उठा के हम यूंँ चले
कि हम को देखते ही शर्म से गड़े हैं पहाड़ '--- इस शे`र को उचित लगे तो यूँ कहें :-

'बड़ी सी कोई मुसीबत उठा के हम जो चले
तो हम को देखते ही शर्म से गड़े हैं पहाड़' 

'हम अपने पैर गँवा कर भी चढ़ गए इन पर
हमारे जैसे तलातुम* से कब लड़े हैं पहाड़़'--दोनों मिसरों में रब्त की कमी लगी मुझे, देखें I 

बाक़ी शुभ शुभ I  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .दीपावली

दोहा पंचक. . . . . . दीपावलीदीप जले हर द्वार पर, जग में हो उजियार  ।आपस के सद्भाव से, रोशन हो संसार…See More
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
4 hours ago
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
18 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
18 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
18 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
18 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service