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ग़ज़ल-गलियों में सन्नाटा पसरा शमशानों में शोर

बह्र-ए-मीर

मुद्दत से वीरान पड़े इस उजड़े खंडर की
अब कौन करे परवाह जहाँ में दीदा-ए-तर की

गलियों में सन्नाटा पसरा शमशानों में शोर
आँखों को उम्मीद नहीं थी ऐसे मंज़र की

पास तुम्हारे बढ़ने लगता है जब कोलाहल
याद बड़ी तब आती है अपने सूने घर की

मिलकर मंज़िल पा लेंगे कब ऐसा बोला था
लेकिन तैयारी करते दोनों एक सफ़र की

अक्सर दरवाजे पे आ 'ब्रज' ने राह निहारी
इक दिन तो चिट्ठी आयेगी मेरे दिलबर की

अन्दर के खालीपन से डर डर के घबरा के
'ब्रज' आया पास तुम्हारे तुमने तंग-नज़र की
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 31, 2021 at 7:55pm

आपने ठीक ही कहा है आदरणीय समर जी...देखने में सबसे आसान लेकिन निभाने में मुश्किल बह्र...जरूर आपकी सलाहनुसार और पढ़ने की कोशिश करूँगा... बिना पढ़े तो वैसे भी गुजारा नहीं है।सादर

Comment by Samar kabeer on August 31, 2021 at 3:39pm

मतले और मक़्ते का सानी सुधारना इस बह्र में बहुत मुश्किल है, इस बह्र पर कुछ ग़ज़लें पढ़ें और देखें कि इसे कैसे निभाया जाता है, कुछ ग़ज़लें तो मेरे ब्लॉग पर ही मिल जाएँगी ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 30, 2021 at 11:12pm

आदरणीय समर कबीर जी ग़ज़ल पे आपकी शिरकत...हौसलाफजाई और हमेशा की तरह ज्ञानबर्धक टिप्पड़ी के लिए आपका शुक्रगुजार हूँ...

दरअसल खंडर और दीदा-ए--तर ये दोनों ही शब्द हूबहू रेख़्ता में कई बार पढ़े हैं...इसलिए इस्तेमाल किया है।इसके अलावा मतले का सानी बन ही नहीं रहा था मुझसे इसलिए "अब" शब्द जबरजस्ती रख दिया है।चौथा शे'र कमजोर तो है..कुछ सुधार की कोशिश करता हूँ। 'तंग-नज़र' में यदि नज़र को 12 मानलें तो बह्र दुरुस्त है।आगे आपकी सलाह की प्रतीक्षा में...सादर

Comment by Samar kabeer on August 30, 2021 at 6:30pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, 6 फ़ेलुन 1 फ़ा पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'मुद्दत से वीरान पड़े इस उजड़े खंडर की
अब कौन करे परवाह जहाँ में दीदा-ए-तर की'

मतले के ऊला मिसरे में 'खँडर' शब्द को अमूमन 12 पर लिया जाता है,लेकिन कहीं कहीं इसे 22 पर भी देखा गया है ।

सानी मिसरे में पहली बात ये कि 'दीदा-ए-तर' को "दीद-ए-तर" लिखा जाता है,और इस मिसरे की बह्र भी चेक करें, मिसरे में लय बाधित है ।

'लेकिन तैयारी करते दोनों एक सफ़र की'

ये मिसरा मात्रा के हिसाब से पूरा है, लेकिन शब्द विन्यास के कारण इसमें गेयता नहीं है,ग़ौर करें ।

'ब्रज' आया पास तुम्हारे तुमने तंग-नज़र की'

इस मिसरे की बह्र चेक करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 29, 2021 at 7:42am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अमीरुद्दीन जी...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 27, 2021 at 8:00pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, बह्र-ए-मीर पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।

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