For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अवसरवादी  - लघुकथा –

अवसरवादी  - लघुकथा –

आज शहर के लोक प्रिय नेताजी का जन्मदिन  बड़े जोर शोर से मनाया जा रहा था। इस बार इतने सालों बाद बहुत खोज बीन के बाद ये पता चला कि नेताजी की असली जन्म तिथि दो अक्टूबर ही है।किसी को कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ क्योंकि नेताजी जिस जमाने में पैदा हुए थे उस वक्त स्कूल में दाखिले के समय कोई जन्म तिथि का प्रमाण पत्र माँगता भी नहीं था।बनवाने का रिवाज़ भी नहीं था।मुँह जुबानी जो भी तारीख बोल दी वही लिख दी जाती थी।

कैसा विचित्र संयोग था कि  नेता  जी का जन्म दिन भी  बापू जी और शास्त्री जी के  जन्म दिन के साथ  था। लेकिन हमारे नेताजी की विचारधारा इन दोनों विभूतियों से कोई मेल नहीं खाती थीं।  एक कहावत है हाथी के दाँत दिखाने के और  खाने के और होते हैं। वह हमारे नेताजी पर सटीक बैठती थी। वैसे भी हमारे नेताजी किसी हाथी से कम थोड़े ही थे|  

खाने पीने के शौकीन नेता  जी आज गाँधी जयंती पर आर्य समाज मंदिर में बापू के आदर्शों का ढिंढोरा पीटते हुए शहर के तमाम गरीबों को दान पुन्य कर रहे थे।चुनाव के माहौल को सामने देखते हुए अच्छा खासा खर्चा किया था।जैसे कपड़े,खाने के पॉकिट,मिठाई के डब्बे और फ़ल इत्यादि।

सभी को नेताजी अपने हाथों से सम्मान पूर्वक वितरित कर रहे थे।

तभी उनकी नज़र भीड़ से अलग कोने में बैठे कुछ लोगों पर पड़ी।जो कि ढंग से तन भी ढके हुए नहीं थे। अंदर धंसे हुए पेट और पसलियाँ दिख रही थीं | देखने से ऐसा लगता था जैसे कई दिनों से भूखे हों।

नेताजी ने अपने सचिव से पूछा,"ये लोग कौन हैं और ये अलग क्यों बैठे हैं?"

"साहब ये लोग अछूत हैं।“

"यहाँ कैसे आ गये ये लोग?"

"सर आपने ही बुलाया था| कल जिस बस्ती में आप गये थे उसी बस्ती के लोग हैं।“

नेता जी को तुरंत याद आ गया कि कल ही तो इन लोगों को शराब और नोट बाँट कर आये थे। ये बात अलग है कि यह सब चोरी छिपे उनकी झोली में दूर से डाल रहे थे। "

उसी वक्त नेताजी की नज़र वहाँ मौजूद  एक दो पत्रकारों पर पड़ी। नेताजी ने तुरंत पैतरा बदल लिया।

"क्या कहा अछूत? अरे तुम लोग पगला गये हो? ये तो सही माने में प्रभु के बंदे हैं। इन्हीं की बदौलत यह देश चल रहा है।"

और अचानक नेता जी उन लोगों की तरफ़ दौड़ पड़े,"अरे मंगलू तुमने तो हद कर दी।हमारे खास आदमी होकर तुम यहाँ अलग से बैठे हो। हमसे कोई भूल हो गयी क्या? चलो आओ हमारे साथ।"

और अगले क्षण नेताजी ने मंगलू को गले लगा लिया।

वे सभी  लोग हैरान थे | क्योंकि  मंगलू को मरे हुए दो साल हो गये थे |मगर नेताजी की बात कौन काटे  ।

मौलिक, अप्रकाशित  एवम अप्रसारित

Views: 400

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on October 12, 2020 at 9:54am

हार्दिक आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 10, 2020 at 7:04pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, हमेशा की तरह धारदार लघुकथा हुई है. नेतागण ऐसे ही अवसरवादी होते हैं. कैमरे के सामने उनके हाथी के दांत ही तो दिखते हैं. बहुत बहुत बधाई!

Comment by TEJ VEER SINGH on October 5, 2020 at 11:13am

हार्दिक आभार आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 4, 2020 at 11:08am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service