For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -:- ख़ुद ही ख़ुद को निहारते हैं हम

ख़ुद ही ख़ुद को निहारते हैं हम
आरती ख़ुद उतारते हैं हम

फिर भी वैसे के वैसे रहते हैं
ख़ुद को कितना सँवारते हैं हम

दूसरों का मजाक करते हैं
ख़ुद की शेखी बघारते हैं हम

सिर्फ़ अपनी किसी जरूरत में
दूसरों को पुकारते हैं हम

डाल कर दूसरों में अपनी कमी
दूसरों को विचारते हैं हम

जीतने से ज़ियादा आये मज़ा
जब महब्बत में हारते हैं हम

इस खुशी का कहीं ठिकाना नहीं
स्वर्ग जब भी सिधारते हैं हम

आपके इंतजार में कैसे?
इक सदी को गुजारते हैं हम

जो बुराई समाज ने दी,उसे
अपने अंदर ही मारते हैं हम

ग़ल्तियों को उठा के अपनी "सुजान"
कुछ न कुछ तो सुधारते हैं हम ।

सूबे सिंह सुजान 

मौलिक व अप्रकाशित. 

Views: 460

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 24, 2020 at 7:35pm

Samar kabeer,ji  आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया का बहुत बहुत आभार ।

आपने कंई शेर ठीक किये हैं आपकी विशाल हृदयता का मैं बहुत आभारी हूँ ।

Comment by Samar kabeer on March 24, 2020 at 7:19pm

जनाब सूबे सिंह सुजान जी आदाब,बहुत समय बाद पटल पर आपकी रचना देख कर अच्छा लगा ।

ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन कुछ मिसरे सुधार चाहते हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'ख़ुद को कितना सँवारते हैं हम'

इस मिसरे में 'कितना' की जगह "जितना" शब्द उचित होगा ।

'दूसरों का मजाक करते हैं 
ख़ुद की शेखी बघारते हैं हम'

इस शैर को यूँ कहना उचित होगा:-

'दूसरों का मज़ाक़ उड़ाते हुए

रोज़ शेख़ी बघारते हैं हम'

'सिर्फ़ अपनी किसी जरूरत में'

इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'जब ज़रूरत पड़े हमें कोई'

'इस खुशी का कहीं ठिकाना नहीं 
स्वर्ग जब भी सिधारते हैं हम'

इस शैर का भाव समझ नहीं आया,आख़िर आदमी कितनी बार स्वर्ग सीधारता है?

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 23, 2020 at 3:24pm

रवि भसीन शाहिद जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब । आपकी सहृदयता को नमन है  

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on March 23, 2020 at 11:28am

*बहुत ख़ूब

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on March 23, 2020 at 9:23am

आदरणीय सूबे सिंह सुजान साहिब, भय ख़ूब। इस रचना पर आपको हार्दिक बधाई। इस ग़ज़ल में स्वयं का जो विश्लेषण करने का प्रयत्न है, वो बहुत अच्छा लगा। वाक़ई हम अपने अंदर झाँकने का प्रयास बहुत कम करते हैं, और आपकी ग़ज़ल ऐसा करने की प्रेरणा देती है।

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 22, 2020 at 2:08pm

बहुत दिनों बाद आप सबके बीच ग़ज़ल लेकर हाज़िर हूँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service