For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नहीं बदले हम - डॉo विजय शंकर

समय सरसठ साल
कम नहीं कहलाता है
एक अबोथ शिशु
वयोवृद्ध हो जाता है |
बदले कोई तो दुनियाँ
जहान बदल जाए
न बदले तो जमीं क्या
पावदान न बदल पाये |
बहुत कुछ बदला , नहीं बदला ,
आदमी का आदमी के प्रति रुख
नहीं बदला आदमी का
आदमी के प्रति व्यवहार |
बदले हैं तो उपकरण ,
कपड़े और कीमतें ,
सत्ता के नायक और आका
सत्ता के गलियारों के लोग |
नहीं बदली हमारी दृष्टि ,
न ही हमारी सोच |
सरकार हम बन गए ,
सरकार हम दे न पाये |
आजाद हम हो गए,
आजादी हम दे न पाये |

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 18, 2014 at 12:40pm
कविता तो आपकी सुसंगति में ही सुगठित होगी , साथ बनाये रखिये और ऐसे ही मार्ग दर्शाते रहिये मैं भी प्रयास करूंगा , आदरणीय सौरभ जी ,
सादर .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2014 at 12:19pm

मेरे कहे को मान देने के लिए सादर धन्यवाद, आदरणीय.  वस्तुतः मैं  आपके तथ्य से अधिक आपकी कविता के लिहाज पर बातें कर रहा था.

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 18, 2014 at 12:14pm
आदरणीय सौरभ जी,
आपकी हार्दिक बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , ह्रदय से .
आपके इंगित और सन्देश , दोनों समझ में हैं . हमारा उद्देश्य भी इंगित करना और सन्देश देना ही होता है , विषय इतना व्यापक है कि कथ्य में कुछ भी लिखा जाए कितना भी लिखा जाए , बहुत कुछ रह ही जाएगा . मैं वैसे भी छोटे-छोटे टुकड़ों में ही लिखता हूँ ताकि अधिक से अधिक लोग चलते-चलते भी एक नज़र डाल लें . प्रसंगतः , एक बात आपके भी ध्यान में आती होगी कि कारगर हो जाए तो एक शब्द भी काफी है , वरना कितने ग्रन्थ पड़े हैं , बस पड़े हैं , जो पढ़ते हैं वो लागू कर नहीं पाते , जो लागू कर सकते हैं वो पढ़ते नहीं , दोनों में कोई तालमेल नहीं .
आपकी पारखी नज़र से कमियां झूट जाएँ ,यह भी तो संभव नहीं , आपके सुझाव सदैव ध्यान देने योग्य होते हैं , मैं भी अवश्य ध्यान दूंगा .
बहुत बहुत धन्यवाद .
सादर .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2014 at 11:28am

प्रस्तुति के तथ्य के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय शंकरजी.

किन्तु आपके तथ्य के प्रस्तुतीकरण यानि कथ्य के तौर पर इस रचना को अभी बहुत कसना-सधना है. 

विश्वास है कि आप मेरे सकारात्मक इंगितों और संदेश के मर्म को समझेंगे.
सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 18, 2014 at 8:32am
आपके विचारों से मैं सहमत हूँ , बधाई हेतु धन्यवाद आदरणीय विजय निकोर जी .
Comment by vijay nikore on August 18, 2014 at 3:20am

ऐसा है कि हम मानव प्राय: परिवर्तन लाना चाहते हैं, परन्तु, तब तक जब तक उस परिवर्तन से हमारे अपनी आर्थिक या निजि स्थिति में कोई कमी न आए।

सामयिक विषय पर सुन्दर रचना गढ़ी है। बधाई, आदरणीय विजय जी। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 17, 2014 at 8:08pm
बहुत सही पकड़ है आपकी आदरणीय लक्षमन प्रसाद लाडीवाला जी , बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद .
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 17, 2014 at 6:26pm

स्व+तंत्र = स्वतंत्र हम हो गए सड़सठ साल हो गए पर दे न पाए स्वतंत्रता | सुन्दर और चिन्तन परक रचना के लिए बधाई 

डॉ विजय शंकर जी | सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 16, 2014 at 9:08pm
आदरणीय सविता मिश्रा जी , बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by savitamishra on August 16, 2014 at 7:29pm

bahut khubsurt _/\_

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service