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मैं दामिनी हूँ

आप की जैसी एक जिंदगानी हूँ
जीना था मुझे आप की तरह
रोज़ सवेरे उठकर ऑफिस जाना था
एक छोटा सा घर बनाना था।

किसीकी बहन तो थी ही
किसीकी जननी भी कहलानी थी
माँ मुझे जीना था।

आज जल गया मेरा सवेरा
टूट गये सारे अरमान मेरे
जा रही मैं इस दुनिया को छोड़ कर
मगर माँ मुझे जीना था
रोज़ सवेरे आप का पैर छूना था।

उजाड़ गयी दुनिया मेरी
पर एक ख्वाब मुझे बुनना था
मगर माँ मुझे जीना था।

कैसे कहूँ, जो अब मैं चली गयी
लोगों की दिल में चोट बनकर रह गयी
इस चोट को दुनिया वालों, खुरेदना मत
मैं जा रही, पर ख्याल आप की
माँ बहन का रखना।

जब भी लगे चोट उनको
तो मुझे याद कर लेना,
मैं दामिनी हूँ-
लोगों, मुझे दिल में बसाए रखना,
मैं आज जो जीत गयी
ये जीत आप की बहन बेटी की होगी
मुझे जीत जाने दो
मुझे जीने दो।

माँ मुझे जीना था।

....Lata Tej.....
९/१३/१३

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on September 15, 2013 at 1:12pm

मर्मस्पर्शी ..ह्रदय की गहराई में उतरती कविता के लिये हार्दिक बधाई लता जी !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 1:01am

बहुत ही प्रभावशाली रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीया लता जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 14, 2013 at 11:04pm

उफ़ उफ़ मर्मस्पर्शी रचना न जाने क्यूँ जब भी ऐसी रचनाएँ पढता हूँ एक अजब सी बेचैनी हो जाती है, मन भीतर से दुखने लगता है. आपको बधाई आदरणीया

Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 10:56pm

आदरणीया लता तेज जी बेहद मार्मिक रचना बहुत बधाई आपको ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2013 at 5:59pm

बहुत ही मार्मिक रचना ढेरो बधाईयाँ आदरणीया लता तेजश्वर् जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2013 at 5:39pm

माँ मुझे जीना था -बहुत ही मार्मिक रचना बन पड़ी है, ढेरों बधाईयाँ लता जी | सादर 

Comment by Lata tejeswar on September 14, 2013 at 4:29pm

dhanyabaad adaraniya Dr Ashutosh Mishra ji

Comment by Lata tejeswar on September 14, 2013 at 4:28pm
Comment by Lata tejeswar on September 14, 2013 at 4:28pm

Dhanyabaad Rajesh kumariji..

Comment by Lata tejeswar on September 14, 2013 at 4:27pm

Adaraniya Bagi ji, yah to jivan ki ek sachchi kahani hai isse jitana uchhala jae utna hi dukh hoti hai lekin is marma sparshi rachana ko preshit kar mere man ki dukh Damaini ki roop me bahar nikali hai...sach kahe to aaj har ek stree Damini ki jindagi se ulajha kar rah gayi hai.. unhe uljhanon se bahar aane ko bahut samay bhi lag sakta hai aur aasha hai kal ke baad phir se streeyaan kuchh vishwas paa liye honge ki samaj abhi apahij nahi hui hai...use abhi jivan baaki hai ...yahi sochh unhe phir se ghar se bahar nikalane sahayata karegi... ye hamari taraf se Damini ke liye ek choti si shraddhanjali hai... Dhanyabaad rachana ko sarahane ke liya.

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