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ग़ज़ल 

अज़ीज़ बेलगामी

हर शब ये फ़िक्र चाँद के हाले कहाँ गए
हर सुबह ये खयाल उजाले कहाँ गए

अब है शराब पर या दवाओं पे इन्हेसार
जो नींद बख्श दें वो निवाले कहाँ गए

वो इल्तेजायें मेरी तहज्जुद की क्या हुईं
थी अर्श तक रसाई, वो नाले कहाँ गए

मंजिल पे आप धूम मचाने लगे जनाब
मुझ को ये फ़िक्र, पांव के छाले कहाँ गए

दस्ते कलम में आज भी अखलाक सोज़ियाँ
किरदारसाज थे जो रिसाले, कहाँ गए

गुलशन के बीच खिलने लगे हैं कँवल 'अज़ीज़'
कीचड में ढूँढता हूँ के लाले कहाँ गए"

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Comment

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Comment by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 8:29am
अज़ीज़ साहेब....
इस मक़ामी ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद क़ुबूल करें...
आज ऐसी शायरी की बहुत ज़्यादा दरकार है...
एक बार फिर मुबारक़बाद....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 13, 2011 at 11:11pm
मंजिल पे आप धूम मचाने लगे जनाब
मुझ को ये फ़िक्र, पांव के छाले कहाँ गए

वाह वाह जनाब, क्या बुलंद ख्याल है, बहुत अच्छे, सवाल करते इन मिसरों का कोई सानी नहीं है , सभी के सभी शे'र उम्द्दा है, मकता की खूबसूरती देखते बनती है |
इस बेहतरीन प्रस्तुति पर बधाई कुबूल करे जनाब |
Comment by ismat zaidi on May 13, 2011 at 11:00pm
दस्ते कलम में आज भी अखलाक सोज़ियाँ
किरदारसाज थे जो रिसाले, कहाँ गए

बहुत उम्दा ! वाह !वाक़ई ऐसे रिसालों की कमी खटकती है
Comment by Azeez Belgaumi on May 13, 2011 at 2:11pm

धन्यवाद्
अरुण कुमार जी


अज़ीज़ बेलगामी
09900222551
Comment by Abhinav Arun on May 13, 2011 at 1:12pm

वाह अज़ीज़ साहब उस्तादों वाली शायरी ताकतवर अंदाज़ -

 
मंजिल पे आप धूम मचाने लगे जनाब
मुझ को ये फ़िक्र, पांव के छाले कहाँ गए

इस प्रभावी ग़ज़ल के लिये मुबारकवाद आपको !!

Comment by Azeez Belgaumi on May 13, 2011 at 10:54am
शुक्रिया  गणेश  जी  और  प्रीतम  जी ...

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