For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीतिका .....8 + 8---निगाहें

आँज गगन का नील निगाहें

लगती गहरी झील  निगाहें

 

माँस बदन पर दिख जाये तो

बन जाती है चील निगाहें

 

आन टिकी है मुझ पर सबकी

चुभती पैनी कील निगाहें

 

बंद गली के उस नुक्कड़ पर

करती है क्या डील निगाहें

 

इक पल में तय कर लेती है

यार हज़ारों मील निगाहें

 

बाँध सकेगा मन क्या इनको

देती मन को ढील निगाहें

 

दिखने दे ‘खुरशीद’ नज़ारे

किरणों से मत छील निगाहें 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 726

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 10:36am

आदरणीय गोपालनारायण सर ,आदरणीय गिरिराज सर , आदरणीया परी जी ,आदरणीया प्रतिभा जी ,आदरनिये सुशील सर जी,आदरणीय दिनेश जी ,आप सभी का हार्दिक आभार |दिनेश भाई  नील=नीला रंग (संस्कृत\पुर्लिंग), आँजना=अंजन लगाना ,,मेरा भाव यह था कि ''नायिका की आँखें गगन का नीला रंग आँज कर किसी गहरी झील के सदृश्य हो गई है "  कुछ अच्छे शेर पहले हुये थे बाद में मतला कहा  गया था, इस कारण प्रयास में कुछ कमी रही हो |एक बार  पुनः स्नेह बरसाए |सादर आभार | 

Comment by दिनेश कुमार on February 22, 2015 at 7:17am
बेहतरीन ग़ज़ल हुई हैआदरणीय खुर्शीद भाई जी, सिर्फ पहला मिसरा मुझे नहीं समझ आया, बाकी सभी Top class...वाह वाह वाह
Comment by Sushil Sarna on February 19, 2015 at 7:31pm

आँज गगन का नील निगाहें
लगती गहरी झील निगाहें

माँस बदन पर दिख जाये तो
बन जाती है चील निगाहें

नमन आपकी लेखनी को आदरणीय .... हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 19, 2015 at 1:21pm

आ० खैरादी जी

इतनी उम्दा गजल कौन लिख सकता  है i मतले ने ही मन मोह लिया- आँज गगन का नील निगाहें i   शायद  'का ' शब्द में   टंकन त्रुटि  है i  पूरी गजल लाजवाब i शानदार i पुरअसर i  सादर i

Comment by Pari M Shlok on February 19, 2015 at 12:00pm
माँस बदन पर दिख जाये तो

बन जाती है चील निगाहें

बंद गली के उस नुक्कड़ पर

करती है क्या डील निगाहें
निगाहों का सुन्दर विश्लेषण ... नज़रो को कितने रंगो में ढाल पेश किया आपने ..कमाल लिखा वाह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2015 at 10:32am

आदरणीय खुर्शीद भाई , बहुत सुन्दर गज़ल हुई है , काफिया भी बड़ा कठिन  लगा मुझे , पर आपने खूबसूरती से  निबाह लिया है ॥ आपकओ हार्दिक बधाइयाँ ॥

माँस बदन पर दिख जाये तो

बन जाती है चील निगाहें

 

आन टिकी है मुझ पर सबकी

चुभती पैनी कील निगाहें  --- दोनो अशार  बेहद पसंद आये ॥ बधाई , आदरणीय ।

 

Comment by khursheed khairadi on February 19, 2015 at 10:01am

आदरणीय विजयशंकर सर ,आदरणीय हरिप्रकाश सर ,आप महानुभवों का स्नेह सतत अच्छा लिखने को प्रेरित करता है |सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on February 19, 2015 at 9:59am

आदरणीय मिथिलेश जी ,सराहना के लिए हृदय से आभार |आपकी तरही ग़ज़ल काफ़ी सुन्दर बनी है |मूल ग़ज़ल को भावों को अधिक विस्तार देती हुई है |तरही मिसरा कील के अर्थ को अधिक मर्म के साथ प्रस्तुत कर रहा है |हार्दिक बधाई |सादर आभार |

कोमल दिल को रोज डराती 

"चुभती पैनी कील निगाहें"

Comment by khursheed khairadi on February 19, 2015 at 9:54am

आदरणीय कबीर साहब ,गीतिका आपको भायी ,इसके लिए हृदय से आभार |मतला वाकई ढीला लग रहा है ,अगर इसे यूं रखूं 

आँज गगन का नील निगाहें 

लगती गहरी झील निगाहें 

इस मतले पर आपका आशीर्वाद चाहूँगा |सादर |

Comment by khursheed khairadi on February 19, 2015 at 9:51am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,गीतिका आपको पसंद आयी इसके लिए हृदय से आभार ,स्नेह बनाय रखियेगा |सादर |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service