For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- 55

ग़ज़ल- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

लिखा है गर जो किस्मत में तो फिर बदनाम ही होलें

न बाइज़्ज़त तो बेइज़्ज़त तुम्हारे नाम ही होलें

 

न कुछ करने से अच्छा है तू वादा तोड़ ही डाले 

न हों कामिल वफ़ा में तो दिले नाकाम ही होलें

 

न हो महफ़िल तुम्हारी तो किसी महफ़िल में रोलें हम

चलो हम आज कूचा ए दिले बदनाम ही होलें

 

मुझे रिज़वान रख लें वो बहिश्ते ख़ूब रूई का

घड़ी भर को कभी मेरे वो हमआराम ही होलें

 

जो हों जन्नतनशीं तो ग़ालिबन फिर साथ में तेरे 

कभी हम सैर पे जाएँ कभी हम्माम ही होलें

 

ग़ज़ल है गुफ़्तगू उनसे तवक़्क़ो में कभी शायद

वो वाबस्ता ज़रीआ ए ख़त-ओ-पैग़ाम ही हो लें

 

ख़ुदा मुस्तैद कर मुझको तेरे ग़ैबी निज़ामों में

दिले बेगार से पूरे तेरे कुछ काम ही होलें

 

चलो तुम ‘राज़’ को दे दो सभी झगड़े सुलह करने

कि इसके हाथ नेकी ओ जज़ा अंजाम ही होलें

~ राज़ नवादवी 

रिज़वान- स्वर्ग का द्वारपाल; बहिश्त- स्वर्ग; तवक़्क़ो- अपेक्षा, उम्मीद;  बावस्ता- सम्बद्ध; ग़ैबी- पारलौकिक; निजाम- व्यवस्था; जज़ा- प्रत्युपकार

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

Views: 756

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on October 7, 2017 at 3:17pm

आदरणीय सुरेंदर जी, आपका ह्रदय से आभार. सादर! 

Comment by surender insan on October 7, 2017 at 12:07pm
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं जी।
Comment by राज़ नवादवी on October 6, 2017 at 8:33pm

आदरणीय, मोहम्मद आरिफ़ साहब, आपकी बातें दिल को छू गईं, इस हद तक कि मैं पशेमाँ महसूस कर रहा हूँ. आपकी सुखन नवाज़ी काबिले तारीफ़ है, और मैं निश्चय ही इस मंच पर अन्य विधाओं में लिखने वालों की कृतियों को पढ़कर लाभंविंत होने की दिल से कोशिश करूँगा और जहाँ तक संभव होगा, एक अकिंचन पाठक की हैसियत से योगदान भी करने की चेष्टा करूंगा. दरअस्ल, फिलहाल कुछ घरेलु मुश्किलों के कारण अव्यवस्थित हूँ. आप एक सह्रदय व्यक्ति हैं और मैं आपका सम्मान करता हूँ. मैं कोई निष्णात तो नहीं, बस एक तालिब ही हूँ. बाक़ी तो सब ऊपर वाले पर मुनहसिर है जो सबका मालिक है. सादर  

Comment by Mohammed Arif on October 6, 2017 at 8:17pm
आदरणीय राज़ नवादवी आदाब, बहुत ही अच्छी ग़ज़ल । हर शे'र दाद के लायक । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
नोट:- कितना अच्छा हो अगर आप जैसे निष्णात ग़ज़लगो साहित्य की अन्य विधाओं में अपनी सृजनशीलता का परिचय देने वालों को भी अपनी टिप्पणियों से पोषित करें ताकि उनको भी हौसला मिलें ।
Comment by राज़ नवादवी on October 6, 2017 at 6:20pm

आदरणीय तसदीक़ अहमद खान साहब, आपका ह्रदय से आभार, हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 6, 2017 at 5:54pm
जनाब राज़ नवादवी साहिब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
Comment by राज़ नवादवी on October 6, 2017 at 4:23pm

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज साहब, आपकी नज़रे इनायत का सिल से शुक्रगुज़ार हूँ, सादर! 

Comment by राज़ नवादवी on October 6, 2017 at 4:21pm

आदरणीय जनाब समर कबीर साहब, आपकी इस्लाह और हौसला अफज़ाई का ह्रदय से आभारी हूँ. आपसे जो सीखने को मिलता है उसकी कोई कीमत नहीं, मैं बताये गये हिसाब से वो शेर दुरुस्त कर लूँगा. सादर !!

Comment by राज़ नवादवी on October 6, 2017 at 4:17pm

आदरणीय सलीम  रज़ा साहब, आपका ह्रदय से आभार. सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 6, 2017 at 3:40pm
क्या कहने आदरणीय राज साहेब बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई..बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"हा हा हा.. कमाल-कमाल कर जवाब दिये हैं आप, आदरणीय नीलेश भाई.  //व्यावहारिक रूप में तो चाँद…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
Tuesday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service