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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५४

ग़ज़ल-  १२२२ १२२२ १२२२ १२२२२

मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन

 

मुनासिब है ज़रूरत सब ख़ुदा से ही रजा करना

कि है कुफ़्रे अक़ीदा हर किसी से भी दुआ करना

 

ग़मों के कोह के एवज़ मुहब्बत ही अदा करना

नहीं है आपके वश में किसी से यूँ वफ़ा करना

 

नई क्या बात है इसमें, शिकायत क्यों करे कोई

शग़ल है ख़ूबरूओं का गिला करना जफ़ा करना

 

अगर खुशियाँ नहीं ठहरीं तो ग़म भी जाएँगे इकदिन

ज़रा सी बात पे क्योंकर ख़ुदी को ग़मज़दा करना

 

उफुक़ ए कोह पे जाकर मुड़े है राह फ़िर नीचे

कि जितना डूबता जाए तू उतना हौसला करना

 

दिखाया है ख़ुदी ने कौन है खुदगर्ज़ अपनों में

नहीं फ़ितरत मगर मेरी किसी पे तब्सिरा करना

 

ये दुनिया है खड़ी अब तक तमन्ना के सुतूनों पर

बहुत ही सोचकर आंखों से ख़्वाबों को जुदा करना

 

अना को ख़ाक़ में रखकर ही है वहदानियत मुमकिन

बहुत मुश्किल है ये तौबा, ख़ुदी को ख़ुद रिहा करना

 

सुकूने ज़िंदगानी का तरीका कारगर है ये

कि क़ब्ले आमदे इल्लत अलामत की शिफ़ा करना

 

समझता हूँ तेरी नाज़िश मगर ऐ जाने जाँ समझो

अगर पूरा न कर पाओ तो फ़िर क्यों वायदा करना

 

मुक़म्मल कब हुई ग़र्क़ो फ़ना से आशिक़ी पहले

वफ़ा को है ज़रूरी इंतिहा की इब्तिदा करना

 

नहीं करने से दो इक बार फ़न तकमील होता है

अगर सीखा जो चाहे हो तो उसको बारहा करना

 

अगरचे काम दुनिया के हज़ारों हैं मगर सच है

कि कारे फ़र्द दो ही हैं कि कुछ भी सोचना, करना

 

फ़क़ीराना हिदायत है कि ग़ुस्सा ख़ुद पे लाज़िम है

कि दिलको कुछ शिकायत है तो ख़ुदसे ही गिला करना

 

अना में देखना है रूह को उरयाँ बरअक्से ख़ुद

तो मसनूई इज़ाफ़ा शख़्सियत में बिरहना करना

 

कि पछताओगे जल्दी में लिये हर फ़ैसले से तुम

तसल्ली से कभी भी दिल किसी से आशना करना

 

तलाशे मानी ए हक़ में लगे हैं राज़ अर्से से

कहीं मिल जाए तुमको तो उन्हें भी इत्तला करना

~राज़ नवादवी 

 

मुनासिब- उचित; कुफ़्र- अस्वीकृति, कृतघ्नता; अक़ीदा- धर्म, मत, श्रद्धा, विश्वास; रजा- आशा, आस; कोह- पहाड़; एवज़- बदले में, स्थानापन्न; शग़ल- धंधा, काम, जी बहलाने का का; ख़ूबरू- रूपवान, प्रियतमा; उफुक़- क्षितिज; तब्सिरा- आलोचना, समीक्षा; सतूना- स्तम्भ; अना – मैं; वहदानियत- अद्वैतवाद; तौबा- त्याग; इल्लत- त्रुटि या कमी, रोग, बीमारी, झंझट; अलामत- चिह्न, निशानी; शिफ़ा- रोगमुक्ति; नाज़िश – नाज़, हाव-भाव; ग़र्क़- डूबना, डूबा हुआ; फ़ना– मर जाना, मिट जाना, लुप्त या ग़ायब हो जाना, समाहित हो जाना; इंतिहा- पराकाष्ठा; इब्तिदा- प्रारम्भ; तकमील- पूर्ती, पूरा, समाप्त; बारहा- बहुधा, बार बार; कार- कार्य, उद्यम; फ़र्द- एक व्यक्ति, आदमी; लाज़िम- उपयुक्त, ज़रूरी, आवश्यक; उरयाँ- नग्न; बरअक्से ख़ुद- स्वयं के प्रत्युत, आमने सामने; मसनूई- कृत्रिम; इज़ाफ़ा- वृद्धि, बढ़ोत्तरी; बिरहना- नग्न; हक़- सत्य, सच, ईश्वर; इत्तला- सूचना 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by राज़ नवादवी on October 6, 2017 at 7:56pm

आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी साहब, ग़ज़ल में शिरकत करने एवं हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया, सादर! 

Comment by राज़ नवादवी on October 4, 2017 at 7:08pm

जनाब बासुदेव अग्रवाल नमन साहब, आपकी दाद ओ हौसला अफज़ाई का ह्रदय से आभार, शुक्रिया और नमन. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on October 4, 2017 at 7:06pm

जनाब निलेश शेव्गाओंकर साहब, आपकी सुखन नवाजी का दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on October 4, 2017 at 7:05pm

जनाब सलीम रज़ा साहब, आपकी सुखन नवाजी का दिल से ममनून हूँ, शुक्रिया. सादर. 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 4, 2017 at 1:26pm
वाहहह राजा नवादवी साहिब अद्वितीय ग़ज़ल। उर्दू के प्रकांड पण्डितों के लिए दार्शनिकता पर रिसर्च करने लायक।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 4, 2017 at 11:10am

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है आ. राज़ साहब, बधाई स्वीकार करें 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 4, 2017 at 1:13am
बेहतरीन सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब राज़ नवादवी साहब।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 3, 2017 at 6:27pm
जनाब राज़ साहिब,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद
Comment by राज़ नवादवी on October 3, 2017 at 5:41pm

आदरणीय अफरोज़ साहब, आप का ह्रदय से आभार. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on October 3, 2017 at 5:41pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह साहब, आप का ह्रदय से आभार. सादर 

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