दिल की बात .... एक प्रयास ...
कैसे बोलूँ मैं भला, अपने मन की बात।
ताने देंगे सब मुझे, जब होगी प्रभात।।
नैनों की ये सुर्खियाँ, बिखरे-बिखरे बाल।
कह देंगे सब बेशरम,कैसी बीती रात।।
नैनों के संवाद में, दिल ने मानी हार।
बेकाबू फिर हो गए, अंतस के जज़्बात।।
प्रणय पलों में अंततः, हारे सब स्वीकार।
अवगुंठन में रैन के, खूब हुए उत्पात।।
अंग -अंग में रच गयी प्रथम प्रीत की गंध।
श्वास-श्वास में बस गई, वो मधुर मुलाक़ात।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Samar kabeer जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीयसु narendrasinh chauhan जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीयसुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीयलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।
'कह देंगे सब बेशरम,कैसी बीती रात'
इस पंक्ति में सहीह शब्द है "बेशर्म"221,देखियेगा।
सुशील जी, सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। इस बार एक अलग सृजन की बेहतरीन कोशिश की आपने,, अच्छा सृजन हुआ है। बधाई स्वीकार कीजिये।सादर
आ. भाई सुशील जी, सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।
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