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भारत दर्शन (द्वितीय कड़ी) मत्त गयंद छंद

वैभव औ सुख साधन थे उनको पर चैन नही मिल पाया
कारण और निवारण का हर प्रश्न तथागत ने दुहराया
घोष हुआ दिवि घोष हुआ भ्रम का लघु बंधन भी अकुलाया
गौतम से फिर बुद्ध बने जग विप्लव शंशय पास न आया।।1

गौतम बुद्ध जहाँ तप से हिय दिव्य अलौकिक दीप जलाए
मध्यम मार्ग चुना अनुशीलन राह यहीं जग को बतलाये
रीति कुरीति सही न लगे यदि क्यों फिर मानव वो अपनाए
तर्क वितर्क करो निज से, धर जीवन संयम को समझाये।।2

गाँव जहाँ ब्रज गोकुल से हिय में अपने जन प्रेम बसाये
कृष्ण दिखें हर बालक में अधरों पर वो मुरली लटकाये
नाच रहे सब बाल सखा खुश हो मुख में जस माखन खाये
माँ सम गाय पले घर आँगन दूध दही सब खाय अघाये।।3

सन्त कबीर फकीर कई पनपी जिनसे रस निर्गुण धारा
नानक देव प्रकाश किये जिससे चहुँओर हुआ उजियारा
श्रीमन शंकर देव यहीं तप से बर वैष्णव धर्म सवारा
और महान हुए रविदास समाज विसंगति जात प्रहारा।।4

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2020 at 8:08pm

आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम।

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। रचना पर उपस्थिति और आशीष के लिए हृदयतल से आभार

Comment by Samar kabeer on January 9, 2020 at 4:01pm

जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,

अच्छी रचनाहूई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2020 at 6:35am

आद0 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी सादर अभिवादन। आपकी आपकी रचना पर उपस्थिति और उत्साह बढ़ाती प्रतिक्रिया के लिए आभार निवेदित करता हूँ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2020 at 6:33am

आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकीअनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को बल मिला,, हृदय तल से आभार आपका।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 9, 2020 at 5:59am

आ. भाई सुरेन्द्र जी, उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 8, 2020 at 8:42pm

हार्दिक बधाई आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी। बेहतरीन रचना।

गाँव जहाँ ब्रज गोकुल से हिय में अपने जन प्रेम बसाये
कृष्ण दिखें हर बालक में अधरों पर वो मुरली लटकाये

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