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ट्रेन समय की 

छुकछुक दौड़ी

मज़बूरी थी जाना

भूल गया सब

याद रहा बस 

तेरा हाथ हिलाना

तेरे हाथों की मेंहदी में

मेरा नाम नहीं था

केवल तन छूकर मिट जाना

मेरा काम नहीं था

याद रहेगा तुझको

दिल पर

मेरा नाम गुदाना

तेरा तन था भूलभुलैया

तेरी आँखें रहबर

तेरे दिल तक मैं पहुँचा 

पर तेरे पीछे चलकर

दिल का ताला 

दिल की चाबी

दिल से दिल खुल जाना

इक दूजे के सुख-दुख बाँटे

हमने साँझ-सबेरे

अब तेरे आँसू तेरे हैं

मेरे आँसू मेरे

अब मुश्किल है 

और किसी के

सुख-दुख को अपनाना

------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 3, 2019 at 9:48pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय dandpani nahak जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 3, 2019 at 9:47pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 3, 2019 at 9:47pm

इस उत्साहवर्द्धन के लिये हृदयतल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय  Saurabh Pandey जी। स्नेह बना रहे।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 3, 2019 at 9:45pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया Dr. Geeta Chaudhary जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 3, 2019 at 9:44pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जनाब Samar kabeer साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 3, 2019 at 9:44pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani साहब

Comment by dandpani nahak on November 3, 2019 at 10:31am
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी नमस्कार बहुत ही सुन्दर कविता हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें! बहुत ही सुन्दर भाव उम्दा शब्द चयन और सुघड़ता आपने मुग्ध कर दिया ! पुनः बधाई
Comment by नाथ सोनांचली on November 2, 2019 at 4:50pm

आद0 धर्मेंद्र जी सादर अभिवादन। बेहतरीन भाव पक्ष और विषय को सुघड़ता से शब्दों में बांधने पर आपको कोटिश बधाइयाँ। सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2019 at 11:45am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, मुखड़े से ही आपने भावों को बाँध लिया है जिसका निर्वहन पूरी रचना में बहुत ही ख़ूबसूरती से हुआ है. साथ ही, मुग्ध करता है, विषय और कथ्य का सुगढ़ सम्मिलन ! हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय. 

हालाँकि, नवगीत के निकष को लेकर कई अवधारणाएँ गीति-प्रतीति के क्षेत्र में व्यापी हुई हैं. इनके कारण कई रचनाओं को लेकर कइयों के लिए भ्रम की स्थिति बनती जा रही है. यह देख कर बहुत ही अच्छा लग रहा है कि आपने ऐसे किसी भ्रम या ऐसी किसी अवधारणा से अपनी इस रचना को बचाए रखा है और नवगीत का भाव तथा शिल्प पक्ष सशक्तता के साथ उभर पाया है. 
हार्दिक बधाइयाँ.

Comment by Dr. Geeta Chaudhary on November 2, 2019 at 7:03am

आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी प्रणाम, बहुत भावपूर्ण गीत की रचना हुई, बहुत अच्छा लगाI सुंदर नवगीत के लिए बधाई स्वीकार करेंI

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