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वो मेरा था तारा ...

वो मेरा था तारा ...

यादों के बादल से
नैनों के काजल से
लहराते आँचल से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा


महकती फिजाओं से
परदेसी हवाओं से
बरसाती राहों से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा

सपनों के अम्बर से
खारे समंदर से
मन के बवंडर से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा

यादों के नीड से
महकते हुए चीड से
ख्वाबों की भीड़ से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा

व्योम के अनंत से
प्रेम के बसंत से
सृष्टि के दिगंत से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था
मेरा था
मेरा था
ता ...रा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 615

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Comment by Sushil Sarna on August 8, 2019 at 7:49pm

आदरणीय  C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 8, 2019 at 7:48pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 8, 2019 at 7:48pm

आदरणीय Samar kabeer  जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का दिल से आभार। 

Comment by Samar kabeer on August 8, 2019 at 3:40pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2019 at 5:27am

आ. भाई सुशील जी, सुंदर रचना हुई है , हार्दिक बधाई।

Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 6, 2019 at 7:00pm

सुन्दर 

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