For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 प्रयाग में गंगा से गले मिलकर यमुना ने कहा –” दीदी अब आगे तू ही जा I मेरी इच्छा  तुझसे भेंट करने की थी, वह पूरी हुयी I रही समुद्र में जाकर सायुज्य हो जाने की बात तो वह मोक्ष तुझे ही मुबारक हो I वह मुझे नहीं चाहिए I मैं अब इससे आगे नही जाऊँगी, न अकेले और न तेरे साथ I”

“मगर क्यों बहन ? तुम मेरे साथ क्यों नही चलोगी ? दुनिया मुक्ति के लिए कितने जतन करती है और तू है की मुख चुरा रही है ?”

“हां दीदी ?”

“पर क्यों ?”

“तू हमेशा ज्ञानियों के संग में रही है I बड़े बड़े ऋषि-मुनि तेरे ही तट पर तपस्या कर ब्रह्म ज्ञानी बने है I तू भी उन्ही की राह पर है I पर मैं “मुक्ति” की जगह “भक्ति” में फँस गयी हूँ I मेरा मन तो उस कन्हैया में बसा है जो मेरे तट पर रास लीला रचाता था , जिसने कालिया का बध कर मेरा उद्धार किया था , जिसकी मुरली की तान से मेरे तट गूंजते रहते थे I मैं उन्हीं यादों के सहारे अपना जीवन काटूँगी जब तक मेरी आक्सीजन खत्म नही हो जाती I”

“आक्सीजन तो मेरी भी खत्म हो रही है I लोग तो हमे मारने पर तुले ही है I पर वे सफल मनोरथ हों इससे पहले हमे मुक्ति का संधान कर लेना चाहिए I इसलिये चल बहन व्यर्थ प्रमाद मत कर I”

“नही दीदी, तू नही समझेगी i देख वह ब्राह्मण जो तेरे तट पर नहा रहा है बह क्या गा रहा है ?

 गंगा ने सर उठा कर देखा, “अरे यह तुलसी i यह तो राम भक्त है और कह रहा है कि - सगुनोपासक मोच्छ न लेहीं। “

“तो मैं श्याम भक्त हूँ, मोक्ष मुझे भी नही चाहिए I”

“तब ठीक है बहन, मैं तो चली I”

 गंगा ने यमुना को उपेक्षा से देखा और सागर की ओर बढ़ गयी

(मौलिक/अप्रकाशित )

Views: 1117

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harish Chandra Lohumi on November 26, 2019 at 9:06pm

गहन और भावपूर्ण लघुकथा ! वाह !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2019 at 1:34pm

आदरणीय गोपाल सर . इस मर्मस्पर्शी लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Nita Kasar on August 9, 2019 at 3:50pm

नदी नही हम माँ कहते है उनकी पीड़ा की सुंदर अभिव्यक्ति है कथा में ।बधाई आपको आद०गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 8, 2019 at 11:36am

अग्रज आ० निकोर जी को सादर प्रणाम  I 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 8, 2019 at 11:35am

आओ शून्य आकांक्षी जी , अनुग्रहीत हूँ I 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 8, 2019 at 11:34am

आ० तेजवीर सिंह जी. सादर सादर सादर I 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 8, 2019 at 11:33am

आ० विनय कुमार जी , हौसला अफजाई का शुक्रिया I 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 8, 2019 at 11:32am

आ० समर कबीर साहब , बहुत बहुत धन्यवाद I 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 8, 2019 at 11:31am

आ० प्रभा जी , बहुत बहुत आभार I 

Comment by vijay nikore on August 7, 2019 at 10:10am

आपकी कलम जो भी लिखती है अच्छा लिखती है। हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service