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नमक मसाले से बनती तरकारी है
सच मानों यह असली दुनियादारी है।
देख सलीका नकली बातें करने का
असली पर ही पड़ जाता कुछ भारी है।
छेदों से ही जिसकी है औक़ात यहाँ
छलनी ही समझाती, क्या खुद्दारी है?
होते हों कितने भी पहलू बातों के
हम समझेंगे जितनी अक्ल हमारी है।
तुम मानों जो तुमको अच्छा है लगता
हम मानेंगे बात जो हमको प्यारी है ।
आज लबादे में लिपटे अल्फ़ाज़ सभी
जिनको सुनना जनता की लाचारी है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर सर सादर नमन, सादर हार्दिक आभार
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
वाहह,वाहहह,लाजवाब ग़ज़ल। असली पर नकली भारी...वाहह
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