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ये देखा और' सुना इस फरवरी में
बहकता दिल ज़रा इस फरवरी में।
किसी की कोशिशें कुछ काम आई
कोई जम कर पिटा इस फरवरी में।
दिखावे में ढली है जिंदगी बस
रहे सच से जुदा इस फरवरी में।
मुहब्बत को समेटा है पलों ने
हुआ ये क्या भला इस फरवरी में?
कहीं पर नेह की कोंपल भी फूटी
किसी का दिल जला इस फरवरी में।
करो कुछ याद उनको जो गये हैं
वतन पर जां लुटा इस फरवरी में।
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर जी, सादर नमन! प्रयास के अनुमोदन एवं उत्साहवर्धन के लिए तहेदिल शुक्रिया!
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
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