For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई

मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई

 

आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका

गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई

 

कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में     

अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई

 

रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर

दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई

 

माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा

पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो गई

 

कुछ दिनों का बोल कर अरसा हुआ लौटीं न तुम 

इश्क की मंडी में जानाँ तबसे मंदी हो गई

 

बादलों की बर्फबारी ने पहाड़ों पर लिखा   

रात जब सो कर उठी शहरों में सर्दी हो गई

 

कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए

झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 510

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिगंबर नासवा on February 12, 2019 at 8:43am

बहुत शुक्रिया शिज्जु जी ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 12, 2019 at 7:34am

आ. दिगंबर नासवा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई आपको

Comment by दिगंबर नासवा on February 11, 2019 at 9:35am

शुक्रिया सुरखाब साहब ...

Comment by Surkhab Bashar on February 9, 2019 at 11:38pm

आ़ दिगंबर नासवा साहब उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारक बाद

Comment by दिगंबर नासवा on February 9, 2019 at 12:51pm

बहुत आभार लक्ष्मण जी ... 

अच्छा है सुझाव आपका ... दरअसल मैं चाँद के चौदह और पंद्रह दिन का चक्र पूरा करना चाहता था इसलिए स्पष्ट कर के लिखा ...

बहुत बहुत आभार सराहना के लिए ...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 9, 2019 at 7:14am

आ. भाई दिगम्बर जी, सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

दो हफ्ते को - पखवाड़े' करने से भी दोष निकल जायेगा । सादर...

Comment by दिगंबर नासवा on February 8, 2019 at 7:49pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी ... 

ये दोष हर बार मेरी नज़र में नहीं आ पाता  ... आपके सुझाव बहुत उत्तम हैं ... आपका आभार है ग़ज़ल है को सुगम बनाने के लिए ...

Comment by Samar kabeer on February 8, 2019 at 5:44pm

जनाब दिगंबर नासवा जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'चाँद दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,"चाँद" की जगह "माह" कर सकते हैं,और नहीं करें तो भी कोई बात नहीं,एक सुझाव मात्र है ।

'कुछ दिनों का बोल कर अरसा हुआ लौटी न तुम 

इश्क की मंडी में जाना तबसे मंदी हो गई'

इस शैर के ऊला में 'लौटी' को "लौटीं" और सानी में 'जाना' को "जानाँ" करना उचित होगा ।

'कान दरवाज़े की कुंडी में अटक के रह गए'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,मिसरा यूँ कर लें तो ऐब निकल सकता है:-

'कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई ग़ज़ल की उम्दा पेशकश के लिये आपको मुबारक बाद  पेश करता हूँ । ग़ज़ल पर आाई…"
yesterday
Ravi Shukla commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय अमीरूद्दीन जी उम्दा ग़ज़ल आपने पेश की है शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करे । हालांकि आस्तीन…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service