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अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर - एक कुण्डलिया छंद -

बेटी से परिवार है, बेटी से संसार।
बेटी है माता-बहिन, बेटी ही है प्यार।।
बेटी ही है प्यार, यही लछमी कहलाती।
वहीं बनाती स्वर्ग,जहाँ ये जिस घर जाती।।
सदा निभाती फर्ज, न होने देती हेटी।
पीहर सँग ससुराल, सदा महकाती बेटी।।
(मौलिक व आप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment by Samar kabeer on January 28, 2019 at 10:43am

जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,बालिका दिवस पर अच्छा कुण्डलिया छन्द लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें ।

कयडलिया छन्द का उसूल है कि जिस शब्द से छन्द शुरू'अ होता है उसी शब्द से उसका अंत होता है,लेकिन इस छन्द में ये देखने को नहीं मिला,कृपया इस पर कुछ प्रकाश डालें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 28, 2019 at 7:02am

आ. भाई हरिओम जी, सुंदर कविता हुयी है हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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