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ग़ज़ल: बारम्बार सियासत की क्या (५ )

( 22 22 22 22 22 22 22 2 )
***
बारम्बार सियासत की क्या यह नादानी अच्छी है ? 
धर्मों की आपस में क्या आतिश भड़कानी अच्छी है ? 
***
रखना दोस्त बचाकर मोती कुछ ख़ुशियों की  ख़ातिर भी 
छोटे मोटे ग़म पर आती क्या तुग़्यानी* अच्छी है ?(*बाढ़ )
***
सोचा समझा था पुरखों ने फिर कानून बनाये कुछ 
आज़ादी की ख़ातिर तन की क्या उर्यानी* अच्छी है ?(*नंगापन )
***
करने दो परवाज़ उसे भी आज़ादी बेटी का हक़ 
छूट मिले बेटे को उस पर क्या निगरानी अच्छी है ? 
***
आप किसी की मूरत तोड़ें या तोड़ें विश्वासों को 
हर हालत में सोचें सब क्या यह मनमानी अच्छी है ?
***
एक नज़र तो डाल नई नस्लों पर आज सियासतदाँ 
सोच जवानों के सपनों की क्या कुर्बानी अच्छी है ? 
***
मान लिया वीरान किया तेरे जीवन को उसने पर 
ग़ौर किया जीने की ख़ातिर क्या वीरानी अच्छी है ?
***
बांधों पक्की डोर नहीं तो टूटेंगे या बिखरेंगे 
रोज़-ओ-शब की रिश्तों में क्या खींचातानी अच्छी है ?
***
लिखते सच पर ग़ौर नहीं करता कोई जब आज 'तुरंत '
सोचा है क्या तेरी यह आदत बचकानी अच्छी है ?
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
27  /12 /2018

(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 1, 2019 at 10:00pm

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहेब आपकी सराहना से दिल बाग़ बाग़ हो गया | हार्दिक आभार एवं सादर नमन | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2019 at 7:50pm

आ. गिरधारीलाल जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 30, 2018 at 10:54pm

भाई राज़ नवादवी जी ,जहाँ तक मेरा ख्याल है आतिश स्त्रीलिंग है इसलिए भड़कानी ही सही प्रयोग है ,दूसरा रदीफ़ चूँकि अच्छी है लिया गया है इसलिए भी   भड़कानी ही सही प्रयोग होगा | इसका हिंदी अर्थ भी लिया जाये तो भी भड़कानी ही सटीक बैठ रहा है | अगर मैं इस ग़ज़ल को आना क़ाफ़िया लेकर दुबारा  लिखूं तो शायद रदीफ़ अच्छा है लेकर भड़काना लेना सही होगा | लेकिन आपकी सलाह को नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता | क्योंकि आपका दिया गया मिसरा भी सही है अगर रदीफ़ बदल दिया जाये जो फ़िलहाल ग़ज़ल में मुमकिन नहीं लगता | एक बात और आपकी पंक्ति से धर्मों का आपस में क्या आतिश भड़काना अच्छा है-से यह लग रहा है कि धर्म खुद आग भड़का रहे हैं | जबकि "धर्मों की "करने से ऐसा मुझे लगा की लोगों द्वारा धर्मों की आपस में आग भड़कानी  अच्छी बात है क्या ? खैर,महत्वपूर्ण मेरे लिए ये है कि इस पंक्ति पर आपकी विशेष नज़र गई | वैसे मेरी ग़ज़लों में इस्लाह की गुंजाईश रहती ही है और आपकी इस्लाह से मुझे भी कुछ सीखने का मौका मिलेगा | इसके लिए और ग़ज़ल पर दाद से नवाजने के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ | 

Comment by राज़ नवादवी on December 30, 2018 at 6:25pm

आदरणीय गिरधारी सिंह साहब, अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. कृपया इस मिसरे में नज़रे सानी करें- 

धर्मों की आपस में क्या आतिश भड़कानी अच्छी है ?

क़वायद के मुताबिक़ सही मिसरा होगा- 

'धर्मों का आपस में क्या आतिश भड़काना अच्छा है'

सादर 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 8:54pm

आदरणीय Samar kabeer जी,आदाब , दुरुस्त फ़रमाया के टाइपिंग मिस्टेक है | ग़ज़ल की दाद देकर आपने जो हौसला आफजाई की है उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ | 

Comment by Samar kabeer on December 29, 2018 at 7:59pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

रखना दोस्त बचाकर मोती कुछ ख़ुशियों के ख़ातिर भी'

इस मिसरे में 'के' की जगह "की" करलें क्योंकि 'ख़ुशियों' और 'ख़ातिर' शब्द स्त्रीलिंग हैं । 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 11:17am

भाई Md. anis sheikh जी ,

बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें

Comment by Md. Anis arman on December 29, 2018 at 11:13am

अच्छी ग़ज़ल हुई है गिरधारी सिंह गहलोत "तुरंत " जी दाद के साथ बहुत बहुत बधाई l

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