For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शहीदों के नाम....

रक्त से जिनके सना था,तर-ब-तर कण-कण धरा का,
हिन्द पर कुर्बान थे, भारत के सच्चे लाल थे जो !
सिंह की गर्जन लिए, टूटे फिरंगी गीदड़ों पर,
भय रहा भयभीत जिनसे, काल के भी काल थे जो!!
देख कर वीरत्व जिनका, विघ्न पथ को छोड़ देता ।
स्वयं विपदा काँप जाती,हाथ तूफ़ां जोड़ लेता ।।
जो कनक-सदृश तपाकर स्वयं को, जीते थे हरदम ।
जो कि कायरता, गुलामी, स्वार्थ से रीते थे हरदम ।।
जिनके आगे पर्वतों का कद सदा बौना रहा था ।
तपते अंगारों पे हरदम,जिनका बिछौना रहा था ।।
उष्णता जिनके हृदय की, शैल को पानी बना दे ।
वो जो खुद विपत्ति पर छा कर,उसे फानी बना दे ।।
नाप ली आकाशगंगाएं गरुड़ बन के जिन्होंने ।
काटे थे अहिपाश अंग्रेजी हुकूमत के जिन्होंने ।।
भारती के आन, स्वाभिमान के प्रतिमान थे जो ।
हिन्दू मुस्लिम से परे थे, स्वयं हिंदुस्तान थे जो ।।
दासता माँ भारती की, सूरमा जो सह न पाए।
अश्रु जिनके इस व्यथा पर,,निज नयन में रह न पाए।।
देशहित जिनकी जवानी का रहा क्षण क्षण समर्पित ।
कर गए आज़ाद हमको,कर के अपना शीश अर्पित ।।
धन्य थी वह कोख की जिसने जने थे सिंह-शावक ।
धन्य वह माटी की पाले जिसने ऐसे वीर बालक ।।
हाथ की मेहंदी! सपन! जीवन! नयन का नूर जिसने!
धन्य वह देवी! किया बलिदान निज सिंदूर जिसने!!
जिनके यशगीतों से सारा विश्व गुंजित है, रहेगा ।
सुन के जिनकी वीर गाथाएं हरएक बच्चा पलेगा ।।
हो के जो कुर्बान..हमको दे गए स्वाधीन सांसे ।
जो हमारी नींद की खातिर ,बने थे स्वयं लाशें ।।
साक्षी जिनके त्याग और बलिदान के,धरती-गगन हैं!
उन शहीदों को मेरा क्षण-क्षण नमन! शत-शत नमन है!!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 888

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by V.M.''vrishty'' on October 13, 2018 at 11:27am
आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह जी,प्रणाम! इस मंच पर यह मेरी पहली ही रचना है। प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार!
Comment by नाथ सोनांचली on October 13, 2018 at 10:41am

आद0 वी एम वृष्टि जी सादर अभिवादन। मैं आपकी रचना से इस मंच पर पहली बार मुखातिब हो रहा हूँ। स्वागत है आपका यहां। आपकी रचना बेहद खूबसूरत है। भाव सम्प्रेषण उत्तम। आपकी इस प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई निवेदित है।

Comment by V.M.''vrishty'' on October 11, 2018 at 5:55pm
आदरणीय डॉ छोटेलाल जी, प्रणाम! अत्यंत आभार! आप सबका स्नेह सदैव बना रहे!
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 11, 2018 at 5:52pm

आदरणीया वृष्टि जी बहुत ही उम्दा रचना लिखी हैं बधाई कुबूल कीजिए

Comment by Samar kabeer on October 11, 2018 at 2:29pm

मुहतरमा "वृष्टि " जी मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ,लेकिन ओबीओ मंच का उद्देश्य सीखना सिखाना है, इसलिये यहाँ हर सदस्य गुरु है और हर सदस्य शिष्य,यही कारण है कि सब यहाँ एक दूसरे से एक परिवार के रूप में सीखते सिखाते हैं,यहाँ गुरु शिष्य की परम्परा के लिए कोई स्थान ही नहीं है,उम्मीद है आप मेरी बात को समझ रही होंगी?

Comment by V.M.''vrishty'' on October 11, 2018 at 12:45pm
आदरणीय समर कबीर जी! प्रणाम! कहते हैं कि जिस किसी से भी ज्ञान मिले वो गुरु समान ही होता है, आप उम्र,ज्ञान और अनुभव में हमसे श्रेष्ठ हैं।हम सभी को आपसे सीखने का सौभाग्य प्राप्त होता है। अतः गुरु का संबोधन अनुचित तो नही! फिर भी आपको उचित नही लगता तो आगे से ऐसा नही होगा!
सादर..
Comment by V.M.''vrishty'' on October 11, 2018 at 12:38pm
आदरणीय बृजेश जी,प्रणाम! मेरी रचना आपको पसंद आई,मुझे अत्यंत सुखद अनुभूति हुई। सादर धन्यवाद!
Comment by Samar kabeer on October 11, 2018 at 12:03pm

भाई,मैं कोई गुरु नहीं हूँ,ओबीओ परिवार का एक अदना सदस्य हूँ,गुरु शिष्य का रिश्ता ओबीओ की परिपाटी नहीं है,इस शब्द से बचा जाये,ऐसा निवेदन है ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 11, 2018 at 11:43am

वाह बहुत ही उत्तम भावों से ओत प्रोत रचना..हार्दिक बधाई आदरणीया..

Comment by V.M.''vrishty'' on October 11, 2018 at 11:09am

आदरणीय नवीन जी,, हार्दिक आभार! आपने अपना अमूल्य समय दिया,इसके लिए सचमुच शुक्रगुज़ार हूँ। मैं पूरी कोशिश करूँगी समर जी गुरुदेव और आपके सुझावों पर अमल करने की।

सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service