For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छुट्टी का दिन था तो विवेक सुबह से ही लैपटॉप में व्यस्त था| कुछ बैंक और इंश्योरेंश के जरूरी काम थे, वही निपटा रहा था| बीच में एक दो बार चाय भी पी| विवेक सुबह से देख रहा था कि आज वसुधा का चेहरा बेहद तनाव पूर्ण था। आँखें भी लाल और कुछ सूजी हुई सी लग रहीं थीं। जैसा कि अकसर रोने से हो जाता है|

घर के सारे काम निपटाकर जैसे ही वसुधा कमरे में आकर अपने बिस्तर पर लेटने लगी।

"क्या हुआ  वसुधा, तबियत तो ठीक है ना"?

"मुझे क्या होगा, मैं तो पत्थर की बनी हुई हूँ"।

"अरे यह कैसी भाषा बोल रही हो"?

"आपकी तरह हम कोई पी एच डी थोड़े ही किये हैं। खींच तान कर बी ए कर पाये हैं, वह भी आपकी दया से"।

"इतने रूखेपन से तो तुम कभी नहीं बोलतीं"?

“कब तक ढोंग भरी और दिखावे की जिंदगी जीते रहें। अब नहीं सहा जाता”|

 "जो कुछ कहना है खुलकर कहो। पहेलियाँ मत बुझाओ"।

"आपको पता है आज हमारी शादी को पूरे दो साल हो गये। आज हमारी शादी की सालगिरह है"।

"याद है तभी तो  कल शाम आफ़िस से आते वक्त तुम्हारे लिये तोहफ़े के रूप में सोने का हार लाया हूँ। वह रखा है तुम्हारी ड्रेसिंग टेबल पर"।

"क्या एक स्त्री केवल सोने चाँदी के जेवर और मंहंगी साड़ियों लिये ही जन्म लेती है"?

"क्या मतलब? मैं समझा नहीं"?

"इतने पढ़े लिखे, ज्ञानी पुरुष, यह नहीं जानते कि एक स्त्री के लिये उसके पति का स्पर्श जीवन की सबसे बड़ी धरोहर होती है। जिसके लिये हम दो साल से तरस रहे हैं"।

"वसुधा, तुम अच्छी तरह आनती हो कि हमारी शादी किन परिस्थितियों में हुयी थी"।

"जो भी परिस्थितियाँ थीं, पर उसमें ऐसी तो कोई शर्त नहीं रखी गयी  थी कि हम दोनों जीवन भर रेल की पटरियों की तरह सदैव अलग ही रहेंगे"।

"वसुधा, तुम मेरी पहली पत्नी सुधा की छोटी बहिन हो। मेरी जब सुधा से शादी हुई थी तब तुम मात्र दस साल की थीं"।

वसुधा बीच में ही बात काटकर बोल पड़ी,

"वह सब तो हमारे मन में आज भी एक चल चित्र की तरह बसा है। आपने जीजी से जब प्रेम विवाह किया था तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आप तो एकदम सिनेमा के हीरो जैसे लगते थे। हमने भी जीजी से फ़रियाद कर दी थी कि जीजी हमारे लिये भी ऐसा ही दूल्हा ढूंढना"।

"अरे पहले मेरी पूरी बात तो सुनो"।

"ओह, सॉरी, आप बोलिये"।

"जब हमारी शादी हुई तुम दस साल की थीं। तुम्हारे गाँव में कोई ढंग का स्कूल कालेज नहीं था तो सुधा ने तुम्हें अपने पास बुला लिया"।

"यह सबतो  हम जानते ही हैं, इसमें नया क्या है| क्यों सुना रहे हैं"।

"धैर्य से सुनोगी तभी समझ पाओगी"।

"अच्छा ठीक है"।

"तुम्हारा इस शहर में पढ़ाई के लिये दाखिला कराया तो मैं तुम्हारा गार्जियन यानी संरक्षक बना। इसका मतलब मैं तुम्हारे लिये पिता समान हो गया। फिर मैं तुम्हें घर पर पढ़ाने भी लगा। मतलब मैं तुम्हारे लिये गुरू भी हो गया"।

"आपने अभी तक कोई भी  नयी बात नहीं बताई"।

"अब जरूरी और विशेष बात पर आता हूँ। उस वक्त कुछ शारीरिक अनियमितताओं के कारण सुधा सात साल तक माँ नहीं बन सकी। चिकित्सा के बाद सुधा ने बेटे राहुल को जन्म दिया। राहुल के जन्म के बाद सुधा का स्वास्थ और गिरने लगा। डॉक्टर तो शुरू से ही सुधा को समझाता रहा था कि बच्चे की जिद छोड़ दो। लेकिन सुधा की जिद के आगे हम लोग झुक गये। अगर मुझे सुधा की इस स्थिति की गंभीरता का जरा भी आभास होता तो सुधा को माँ बनने की इजाजत कभी नहीं देता”|

"हाँ, यह बात मुझे मालूम नहीं थी"।

"सुधा की सेहत लगातार गिरती गयी। राहुल के पहले जन्म दिन के कुछ दिन बाद सुधा उसे सदैव के लिये छोड़ कर बृह्म विलीन हो गयी"।

"जीजी के जाने से हमको भी बहुत दुख हुआ था| उनका स्नेह हमारे लिये बहिन से अधिक माँ समान था”।

"जैसे तैसे राहुल को छह महीने एक आया और तुम्हारी मदद से संभाला। फिर रिश्तेदारों की तरफ़ से पुनर्विवाह का जोर पड़ने लगा। मैं इसके पक्ष में नहीं था। क्योंकि सुधा का वज़ूद मेरे दिलो दिमाग पर बुरी तरह छाया हुआ था। इसी बीच तुम्हारे माँ बाबूजी कुछ अन्य रिश्तेदारों को लेकर आ धमके| उन्होंने सुधा के नाम की दुहाई देते हुये मेरे सामने तुम्हारे साथ शादी का प्रस्ताव रख दिया। मैंने हमेशा तुम्हें एक बच्ची और शिष्या की दृष्टि से देखा था अतः मैंने पहले तो मना किया। मेरी और तुम्हारी उम्र के अंतर का भी हवाला दिया लेकिन उन लोगों ने मेरी एक भी दलील नहीं सुनी | उन दोनों की आँखों में से बहते आँसू देखकर मैं भावनाओं में बह गया और इस विषय पर चुप लगा गया।जिसे उन लोगों ने मेरी मूक सहमति मान लिया और शादी की तैयारी शुरू कर दी”।

 "यदि आपको हम पसंद नहीं थे तो आपको सख्ती से मना करना था। आप तो खुद ही उस वक्त ढुल मुल नीति अपनाये हुए थे। हमने खुद देखा था। हम भी तो वहाँ मौजूद थे"।

"वसुधा, बात पसंद नापसंद की नहीं थी। दुविधा थी। एक तरफ राहुल दूसरी तरफ तुम। मैं निर्णय नहीं कर पा रहा था कि तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में कैसे स्वीकर कर सकूंगा"।

"मगर अब तो हम आपकी पत्नी बन चुके हैं फिर आप हमको हमारा हक़ क्यों नहीं दे रहे"।

"सब कुछ तो तुम्हारा ही है। यह घर भी मैंने तुम्हारे नाम पर खरीदा है। राहुल भी तुम्हें माँ कहता है"।

"और पति का प्यार"?

"वसुधा, मैं तुम्हें सुधा का स्थान नहीं दे सकता। यदि तुम्हारे मन में कोई कसक है। कोई कमी है तो मैं तुम्हारा दूसरा विवाह कराने का प्रयास करता हूँ"।

इतना सुनते ही वसुधा गुस्से में आपे से बाहर हो गयी। एक बम की तरह फट पड़ी। रोती जा रही थी और चिल्लाती जा रही थी।

"आपने औरत को क्या एक मिट्टी का खिलोना समझ रखा है? बस यही एक तमाशा होना और बाक़ी रह गया है। यह अरमान भी पूरा कर लीजिये। पर एक बात याद रखियेगा कि अब इस घर की चौखट से केवल हमारी लाश ही बाहर निकलेगी"।

सदैव शाँत रहने वाली वसुधा के इस रूप को देखकर विवेक  घबरा गया। वह वसुधा को शाँत करने के उद्देश्य से उसके निकट गया। उसके सिर पर हाथ रखकर कुछ कहना चाहा लेकिन इसी बीच वसुधा उठी और विवेक को धकियाते हुए कमरे से बाहर निकल गयी। विवेक के जीवन में ऐसी स्थिति कभी आयी नहीं थी तो वह समझ नहीं पा रहा था कि इससे कैसे निपटा जाय। परंतु समस्या को सुलझाना भी अनिवार्य था अन्यथा इतनी शिक्षा प्राप्त करने का लाभ क्या था।

विवेक अपने मन को संतुलित करते हुए वसुधा को खोजने की चाह में कमरे से बाहर आया तो रसोईघर की खिड़की से वसुधा की साड़ी दिखायी दी। विवेक तेज गति से रसोइघर की ओर लपका। रसोईघर में प्रवेश करते ही उसे तेज दुर्गंध आई। विवेक ने देखा कि वसुधा ने अपने ऊपर केरोसिन तेल उड़ेल लिया था और उसके हाथ में माचिस थी। विवेक ने देखा वसुधा माचिस की डिब्बी से तीली निकाल रही थी। विवेक ने फुर्ती से वसुधा का हाथ पकड़ लिया। वसुधा निर्जीव सी एक टूटी हुई लता की तरह विवेक की बाँहों में झूल गयी। विवेक उसे उठाकर कमरे में ले गया।

वसुधा अभी भी हिचकियाँ लेकर रोये जा रही थी, हालाँकि उसे अब वह सब कुछ मिल गया था जिसकी उसे चाह थी।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 894

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on September 14, 2018 at 4:23pm

हार्दिक आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी|

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 13, 2018 at 8:19pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, कहानी अच्छी कही जा सकती है पर आम तौर पर ऐसा होता नहीं ... फिर भी कहानीकार के अपने विचार होते हैं उसे हम नजरंदाज तो नहीं कर सकते! अच्छी रचना के लिए बधाई! 

Comment by TEJ VEER SINGH on September 13, 2018 at 1:25pm

हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।

Comment by vijay nikore on September 12, 2018 at 11:30am

कहानी अच्छी लिखी है।पढ़ कर आनन्द आया। हार्दिक बधाई, मित्र तेज वीर सिंह जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 9, 2018 at 8:13pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।

Comment by Samar kabeer on September 9, 2018 at 7:54pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, अच्छी प्रस्तुति है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 8, 2018 at 10:55am

हार्दिक आभार आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2018 at 6:42am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । अहम सामाजिक सरोकार की विचारोत्तेजक कथा हुयी है, हार्दिक बधाई स्वीकारेें।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 7, 2018 at 8:25pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 7, 2018 at 8:20pm

बहुत बढ़िया। अहम सामाजिक सरोकार की विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। वास्तव में हमारी वसुुुधा/धरा केे साथ भी ऐसी ही अवसरवादी हालात व दुविधाएं हैं! मेरे विचार से इस रचना में शामिल विसंगतियों पर आधारित दो लघुकथायें भी आप बाख़ूबी कह सकते हैं। जहांं तक इस कहानी की बात है, इसमें फ़िल्मी व टीवी धारावाहिक जैसे मोड़ हैं तथा अंत पाठकीय नज़र में नाटकीय कहा जा सकता है। रचना में कसावट की गुंजाइश भी लगती है। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service